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________________ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास का सूर्य उत्तरार्ध मंडल का परिभ्रमण करता है (१२-१३)। ३. इस जम्बूद्वीप में दो सूर्य हैं, एक भरत क्षेत्र में, दूसरा ऐरावत क्षेत्र में-ये सूर्य ३० मुहूर्त में एक अर्धमण्डल का और ६० मुहूर्त में समस्त मण्डल का चक्कर लगाते हैं' (१४ )। ४. परिभ्रमण करते हुए दोनों सूर्यों में परस्परं कितना अन्तर रहता है (१५)? ५. कितने द्वीप-समुद्रों का अवगाहन करके सूर्य परिभ्रमण करता है। (१६-१७) १६. एक-एक रात-दिन में एक-एक सूर्य कितने क्षेत्र में परिभ्रमण करता है ( १८) ? ७. मण्डलों की रचना (१९)। ८. मण्डलों का विस्तार (२०)। डॉ० थीबी ने जरनल ऑफ दी एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल (जिल्द ४९, पृ० १०७ भादि, १८१ भादि) में 'ऑन द सूर्यप्रज्ञप्ति' नामक अपने विद्वत्तापूर्ण लेख में बताया है कि ग्रीक लोगों के भारतवर्ष में आगमन के पूर्व उक्त सिद्धान्त सर्वमान्य था। भारतीय ज्योतिष के अति प्राचीन ज्योतिष-वेदांग ग्रंथ की मान्यताओं के साथ आपने सूर्यप्रज्ञप्ति के सिद्धान्तों की समानता बताई है। इसकी नियुक्ति की कुछ गाथाओं के व्यवच्छिन्न हो जाने के कारण टीकाकार ने उनकी व्याख्या नहीं की (टीका, पृ० १५ अ)। १. जब सूर्य दक्षिण, पश्चिम, उत्तर और पूर्व दिशाओं में घूमता है तो मेरु के दक्षिण, पश्चिम, उत्तर और पूर्ववर्ती प्रदेशों में दिन होता है। २. ब्राह्मण पुराणों की भांति जैनों ने भी इस लोक में असंख्यात द्वीप और समुद्र स्वीकार किये हैं। इन असंख्यात द्वीप-समुद्रों के बीच में मेरु पर्वत अवस्थित है। पहले जम्बूद्वीप है, उसके बाद लवणसमुद्र, फिर धातकी खंड, कालोद समुद्र, पुष्करवर द्वीप-इस प्रकार मेरु असंख्यात द्वीपसमुद्रों से घिरा है। जम्बूद्वीप के दक्षिणभाग में भारतवर्ष और उत्तरभाग में ऐरावतवर्ष है, तथा मेरु पर्वत के पूर्व और पश्चिम में स्थित विदेह, पूर्व विदेह और पश्चिम विदेह-इन दो भागों में बँट गया है। सूर्य, चन्द्र और नक्षत्र मेरु पर्वत के चारों ओर भ्रमण करते हैं। जैन मान्यता के अनुसार जब सूर्य जम्बूद्वीप में १८० योजन से अधिक प्रवेश कर परिभ्रमण करता है तो अधिक से अधिक १८ मुहूर्त का दिन और कम से कम १२ मुहूर्त की रात होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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