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________________ ९४ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास खरोष्ट्री'. पुक्खरसारिया, भोगवती, पहराइया, अंतक्खरिया (अंताक्षरी), अक्खरपुठिया, वैनयिकी, निह्नविकी, अंकलिपि, गणितलिपि, गान्धर्वलिपि, आदर्शलिपि, माहेश्वरी, दोमिलिपि (द्राविडी), पौलिन्दी। ज्ञानार्य पाँच प्रकार के हैं-आभिनियोधिक, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान ।। इस लिपि में ऋ, ऋ, लु, लु, और ळ को छोड़कर ४६ मूलाक्षर (माउयक्खर) बताये गये हैं (समवायांग, पृ० ५७ अ)। ईसवी सन् के पूर्व ५००-३०० तक भारत की समस्त लिपियों ब्राह्मी के नाम से कही जाती थीं (मुनि पुण्यविजय, भारतीय जैन श्रमण संस्कृति अने लेखनकला )। यह लिपि ईसवी सन के पूर्व ५वीं शताब्दी में अरमईक लिपि में से निकली है (मुनि पुण्यविजय, वही, पृ० ८)। ललितविस्तर (पृ० १२५ आदि ) में ६४ लिपियों का उल्लेख है जिनमें ब्राह्मी और खरोष्ट्री ये दो मुख्य लिपियाँ स्वीकार की गई हैं। ब्राह्मी बाँयें से दायें और खरोष्ट्री दॉय से बॉयें लिखी जाती थी। खरोष्ट्री लिपि लगभग ईसवी सन् के पूर्व ५०० में गन्धार देश में प्रचलित थी। आगे चलकर इस लिपि का स्थान ब्राह्मी लिपि ने ले लिया। इसी लिपि में से आजकल के नागरी लिपि के अक्षरों का विकास हुआ है। अशोक के लेख इसी लिपि में लिखे गये थे। देखिए--डा. गौरीशंकर ओझा, भारतीय प्राचीन लिपिमाला, पृ० १७-३६. २. समवायांग सूत्र (पृ. ३१ अ) में १८ लिपियों में उच्चत्तरिआ और भोगवइया लिपियों का उल्लेख है। विशेषावश्यकभाष्य की टीका (पृ० ४६४) में निम्नलिखित लिपियाँ गिनाई गई हैं--हंस, भूत, यक्षी, राक्षसी, उड्डी, यवनी, तुरुक्की, कीरी, द्राविडी, सिंधवीय, मालवी, नटी, नागरी, लाट, पारसी, अनिमित्ती, चाणक्यी, मूलदेवी । और भी देखिए-लावण्यसमयगणि, विमलप्रबन्ध; लक्ष्मीवल्लभ उपाध्याय, कल्पसूत्र-टीका । चाणक्यी, मूलदेवी, अंक, नागरी तथा शून्य, रेखा, औषधि, सहदेवी आदि लिपियों के लिए देखिए--मुनि पुण्यविजय, वही पृ० ६; अगरचन्द नाहटा, जैन आगमों में उल्लिखित भारतीय लिपियाँ एवं 'इच्छा लिपि', नागरीप्रचारिणी पत्रिका, वर्ष ५७, अंक ४, सं० २००९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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