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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
द्वीन्द्रिय जीव -- पुलाकिमिय ( गुदा में उत्पन्न कृमि ), कुक्षिकृमि ( पेट के कीड़े), गंड्रयलग ( गेंडुआ ), गोलोम, णेउर, सोमंगलग, वंसीमुह, सूचिमुख, गोजलौका, जलौका, जालाउय, शंख, शंखनक ( छोटे-शंख ), घुल, खुल्ल (क्षुद्र), गुलय, खंध, वराट ( कौड़ी ), शौक्तिक, मौक्तिक, कल्यावास, एकतः आवर्त, द्विधा आवर्त, नंदियावत्त, संयुक्क ( शंबुक ), मातृवाह, सीपी, चंदनक, समुद्रलिक्ष' (२७)।
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श्रीन्द्रिय-- औपयिक, रोहिणिय, कुंथू, पिपीलिका ( चींटी ), उद्दसंग ( डांस ), उद्देहिय ( दीमक ), उक्कलिया, उपाय, ( उत्पाद ), उप्पाड ( उत्पादक ), तणाहार ( तृणाहार ), कट्ठाहार ( काष्टाहार ), मालुका, पत्राहार, तणर्बेटिय, पुष्फलैटिय, फलवेंटिय, बीजर्बेटिय, तेबुरणमिंजिय, तओसिमिंजिय, कप्पासहिमिंजिय, हिल्लिय, झिल्लिय, झिंगिर, किंगिरिड, बाहुय, लहुय, सुभग, सौवस्तिक, सुयवेंट, इंदकायिक, इंदगोवय ( इन्द्रगोप ), तुरुतुंग, कच्छवाहग ( अथवा कोत्थलबाग ), जूय ( जूँ ), हालाहल, पिसुय, सयवाइय ( शतपादिका ), गोम्ही ( कानखजूरा ), हत्थिसौंड' ( २८ ) ।
चतुरिन्द्रिय- अंधिय, पत्तिय, मच्छिय, मशक ( मच्छर ), कीट, पतंग, टंकुण ( खटमल ), कुक्कड, कुक्कुह, नंदावर्त, सिंगिरड ( उत्तराध्ययन में भिंगिरीडी ), कृष्णपत्र, नीलपत्र, लोहितपत्र, हारिद्रपत्र, शुक्लपत्र, चित्रपक्ष, विचित्रपक्ष, ओहंजलिय, जलचारिका, गंभीर, णीणिय, तंतव, अच्छिरोड, अक्षिवेध, सारंग, नेउर, दोल, भ्रमर, भरिली, जरुल, तोड, बिच्छू, पत्रबिच्छू, छाणचिच्छू, जलचिच्छू, पियंगाल ( अथवा सेइंगाल ), कणग, गोमय-कीडा ( गोबर के कीड़े ) ( २९ ) ।
पंचेन्द्रिय जीव चार प्रकार के हैं— नैरयिक, तिर्यच, देव ( ३० ) 1
तिर्यच तीन प्रकार के होते हैं- जलचर, थलचर और नभचर ( ३२ ) | जलचर — मत्स्य, कच्छप, ग्राह, मगर और सुंसुमार । मगर - सण्हमच्छ ( श्लक्ष्ण मत्स्य ), खवल्लमत्स्य, जुंगमत्स्य, विज्झडियमत्स्य, हलिमत्स्य, मगरिमत्स्य ( मगरमच्छे ), रोहितमत्स्य, हलीसागर, गागर, वड, वडगर, गन्भय, उसगार, तिमि,
देखिए - उत्तराध्ययन ( ३६. १२८ - ९ ) भी ।
देखिए- -- उत्तराध्ययन ( ३६. १३७-९ ) भी । देखिए - वही, ३६. १४६-८ ।
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मनुष्य और
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