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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास परिणाम यह होता है कि सूत्रों के मूल उच्चारण यथावत् नहीं रह पाते । उपर्युक्त तथ्यों को देखने से बहुत-कुछ स्पष्ट हो जाता है कि पहले से ही अर्थात् भगवान् महावीर के समय से ही धर्मपुस्तकों के लेखन की प्रवृत्ति विशेष रूप में क्यों नहीं रही तथा महावीर के हजार वर्ष बाद आगमों को पुस्तकारूढ़ करने का व्यवस्थित प्रयत्न क्यों करना पड़ा ?
महावीर के निर्वाण के बाद श्रमणसंघ के आचार में शिथिलता आने लगी। उसके विभिन्न सम्प्रदाय होने लगे । अचेलक एवं सचेलक परम्परा प्रारम्भ हुई। वनवास कम होने लगा। लोक सम्पर्क बढ़ने लगा। श्रमण चैत्यवासी भी होने लगे। चैत्यवास के साथ उनमें परिग्रह भी प्रविष्ट हुआ। ऐसा होते हुए भी धर्मशास्त्र के पठन-पाठन की परम्परा पूर्ववत् चालू थी। बीच में दुष्काल पड़े। इससे धर्मशास्त्र कंठाग्र रखना विशेष दुष्कर होने लगा। कुछ धर्मश्रुत नष्ट हुआ अथवा उसके ज्ञाता न रहे । जो धर्मश्रुत को सुरक्षित रखने की भक्तिरूप वृत्तिवाले थे उन्होंने उसे पुस्तकबद्ध कर संचित रखने की प्रवृत्ति आवश्यक समझी। इस समय श्रमणों ने जीवनचर्या में अनेक अपवाद स्वीकार किये अतः उन्हें इस लिखनेलिखाने की प्रवृत्ति का अपवाद भी आवश्यक प्रतीत हुआ। भगवान् महावीर के निर्वाण के लगभग एक हजार वर्ष वाद देवर्धिगणि क्षमाश्रमण प्रमुख स्थविरों ने श्रुत को जब पुस्तकबद्ध कर व्यवस्थित करने का प्रयत्न किया तब वह अंशतः लुप्त हो चुका था। अचेलक परम्परा व श्रुतसाहित्य :
सम्पूर्ण अपरिग्रह-व्रत को स्वीकार करते हुए भी केवल लज्जा-निवारणार्थ जीर्ण-शीर्ण वस्त्र को आपवादिक रूप से स्वीकार करने वाली सचेलक परम्परा के अग्रगण्य देवधिगणि क्षमाश्रमण ने क्षीण होते हुए श्रुतसाहित्य को सुरक्षित रखने के लिए जिस प्रकार पुस्तकारूढ़ करने का प्रयत्न किया उसी प्रकार सर्वथा अचेलक अर्थात् शरीर एवं पोंछी व कमंडल के अतिरिक्त अन्य समस्त बाह्य परिग्रह को चारित्र की विराधना समझने वाले मुनियों ने भी षट्खण्डागम आदि साहित्य को सुरक्षित रखने के लिए प्रयत्न प्रारम्भ किया। कहा जाता है कि आचार्य धरसेन' १. वेदसाहित्य विशेष प्राचीन है । तद्विषयक लिखने-लिखाने की प्रवृत्ति का भी
पुरोहितों ने पूरा ध्यान रखा है। ऐसा होते हुए भी वेदों को श्लोकसंख्या जितनी प्राचीनकाल में थी उतनी वर्तमान में भी नहीं है। २. बृहटिप्पनिका में 'योनिप्राभृतम् वीरात् ६०० धारसेनम्' इस प्रकार का
उल्लेख है। ये दोनों धरसेन एक ही है अथवा भिन्न-भिन्न, एतद्विषयक कोई विवरण उपलब्ध नहीं है।
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