________________
( ५५ ) जरूरी है किन्तु उसका कारण यह तो नहीं हो सकता कि चूंकि अंग सार्वजनिक हो गये थे, अतएव वे दिगम्बर समाज में मान्य नहीं रहे । अतएव पंडितजी का यह लिखना कि "उसने इस विषय में जन-जन की स्मृति को प्रमाण नहीं माना" निराधार है, कोरी कल्पना है। आखिर जिनके लिए पंडितजी ने जन-जन शब्द का प्रयोग किया है वे कौन थे? क्या उन्होंने अपने गुरुओं से अंगज्ञान लिया ही नहीं था ? अपनी कल्पना से ही अंगों का संकलन कर दिया था ? हमारा तो विश्वास है कि जिनको पंडितजी ने 'जन-जन' कहा है वे किसी आचार्य के शिष्य ही थे और उन्होंने अपने आचार्य से सीखा हुआ श्रत ही वहाँ उपस्थित किया था । इसीलिए तो कहा गया है कि जिसको जितना याद था उसने उतना वहाँ उपस्थित किया ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org