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________________ ( ४५ ) इस विवरण से यह स्पष्ट है कि सकलश्रुतधर होने में द्वादशांग का जानना जरूरी है। अंगबाह्य ग्रन्थों का आधार ये ही द्वादशांग थे अतएव सकलश्रुतधर होने में अंगबाह्य महत्त्व के नहीं। यह भी स्पष्ट होता है कि इसमें क्रमशः अंगधरों अर्थात् अंगविच्छेद की ही चर्चा है । धवला में ही आवश्यकादि १४ अंगबाह्यों का उल्लेख है किन्तु उनके विच्छेद की चर्चा नहीं है। इससे यह फलित होता है कि कम से कम धवला के समय तक अंगबाह्यों के विच्छेद की कोई चर्चा दिगम्बर आम्नाय में थी ही नहीं । आचार्य पूज्यपाद ने श्रुतविवरण में सर्वार्थसिद्धि में अंगबाह्य और अंगों की चर्चा की है किन्तु उन्होंने आगमविच्छेद की कोई चर्चा नहीं की । आचार्य अकलंक जो धवला से पूर्व हुए हैं उन्होंने भी अंग या अंगबाह्य आगमविच्छेद की कोई चर्चा नहीं की है । अतएव धवला की चर्चा से हम इतना ही कह सकते हैं कि धवलाकार के समय तक दिगम्बर आम्नाय में अंगविच्छेद की बात तो थी किन्तु आवश्यक आदि अंगबाह्य के विच्छेद की कोई मान्यता नहीं थी। अतएव यह संशोधन का विषय है कि अंगबा ह्य के विच्छेद की मान्यता दिगम्बर परम्परा में कब से चली ? खेद इस बात का है कि पं० कैलाशचन्द्रजी ने आगमविच्छेद की बहुत बड़ी चर्चा अपनी पीठिका में की है किन्तु इस मूल प्रश्न की छानबीन किये बिना ही दिगम्बरों की साम्प्रतकालीन मान्यता का उल्लेख कर दिया है और उसका समर्थन भी किया है । वस्तुस्थिति तो यह है कि आगम की सुरक्षा का प्रश्न जब आचार्यों के समक्ष था तब द्वादशांगरूप गणिपिटक की सुरक्षा का ही प्रश्न था क्योंकि ये ही मौलिक आगम थे। अन्य आगम ग्रन्थ तो समय और शक्ति के अनुसार बनते रहते हैं और लुप्त होते रहते हैं। अतएव आगमवाचना का प्रश्न मुख्यरूप से अंगों के विषय में ही है । इन्हीं को सुरक्षा के लिए कई वाचनाएँ की गई हैं। इन वाचनाओं के विषय में पं० कैलाशचन्द्र ने जो चित्र उपस्थित किया है ( पीठिका पृ० ४९६ से ) उस पर अधिक विचार करने की आवश्यकता है। वह यथासमय किया जायगा। यहां तो हम विद्वानों का ध्यान इस बात की ओर खींचना चाहते हैं कि आगम पुस्तकाकार रूप में लिखे जाते थे या नहीं, और इस पर भी कि श्रुत विच्छेद की जो बात है वह लिखित पुस्तक की है या स्मृत श्रुत की ? आगम पुस्तक में लिखे जाते थे इसका प्रमाण अनुयोगद्वारसूत्र जितना तो प्राचीन है ही। उसमें आवश्यकसूत्र की व्याख्या के प्रसंग से स्थापना-आवश्यक की चर्चा १. धवला, पृ० ९६ (पु० १). Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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