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________________ परिशिष्ट २८७ उत्तराध्ययन आदि को मूल अथवा अनुवाद के रूप में प्रकाशित किया। स्थानकवासो परम्परा के जीवराज घेलाभाई नामक गृहस्थ ने जर्मन विद्वानों द्वारा मुद्रित रोमन लिपि के आगमों को नागरी लिपि में प्रकाशित किया। इसके बाद स्व० आनन्दसागर सूरिजी ने आगमोदय समिति की स्थापना कर एक के बाद एक करके तमाम आगमों का प्रकाशन किया । सूरिजी का पुरुषार्थ और परिश्रम अभिनन्दनीय होते हुए भी साधनों की परिमितता तथा सहयोग के अभाव के कारण यह काम जितना अच्छा होना चाहिए था उतना अच्छा नहीं हो पाया। इस बीच प्रस्तुत लेखक ने व्याख्याप्रज्ञप्ति-भगवतीसूत्र के दो बड़े-बड़े भाग मूल, टीका, अनुवाद (मूल व टीका दोनों का) तथा टिप्पणियों सहित श्री जिनागम प्रकाशन सभा की सहायता से प्रकाशित किये। इस प्रकाशन के कारण जैन समाज में भारी ऊहापोह हुआ। इसके बाद जैनसंघ के अग्रणी कुंवरजी भाई आनन्दजी की अध्यक्षता में चलने वाली जैनधर्म प्रसारक सभा ने भी कुछ आगमों का अनुवाद सहित प्रकाशन किया। इस प्रकार आगम-प्रकाशन का मार्ग प्रशस्त होता गया। अब तो कहीं विरोध का नाम भी नहीं दिखाई देता । इधर स्थानकवासी मुनि अमोलक ऋषि जी ने भी हैदराबाद के एक जैन अग्रणी की सहायता से बत्तीस आगमों का हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशन किया। ऋषिजी ने इसके लिए अति श्रम किया जो सराहनीय है, किन्तु संशोधन की कमी के कारण इस प्रकाशन में अनेक स्थानों पर टियाँ रह गई हैं । अब तो तेरापंथी मुनि भी इस काम में रस लेने लगे हैं। पंजाबी मुनि स्व० आत्मारामजी महाराज ने भी अनुवाद सहित कुछ आगमों का प्रकाशन किया है। मुनि फूलचन्दजी 'भिक्षु' ने बत्तीस आगमों को दो भागों में प्रकाशित किया है। इसमें भिक्षजी ने अनेक पाठ बदल दिये हैं । वयोवृद्ध मुनि घासीलालजी ने भी आगम-प्रकाशन का कार्य किया है । इन्होंने जैन परम्परा के आचार-विचार को ठीक-ठीक नहीं जाननेवाले ब्राह्मण पण्डितों द्वारा आगमों पर विवेचन लिखवाया है। अतः इसमें काफी अव्यवस्था हुई है। इधर आगमप्रभाकर मुनि पुण्यविजयजी ने आगमों के प्रकाशन का कार्य प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी के तत्त्वावधान में प्रारम्भ किया है। यह प्रकाशन आधुनिक शैली से युक्त होगा। इसमें मूल पाठ, नियुक्ति, भाष्य, चूणि एवं वृत्ति का यथावसर समावेश किया जायगा । आवश्यकतानुसार पाठान्तर भी दिये जाएंगे। विषय-सूची, शब्दानुक्रमणिका, परिशिष्ट, प्रस्तावना आदि भी रहेंगे। इस प्रकार यह प्रकाशन निःसंदेह आधुनिक पद्धति का एक श्रेष्ठ प्रकाशन होगा, ऐसी अपेक्षा और आशा है। महावीर जैन विद्यालय भी मूल आगमों के प्रकाशन के लिए प्रयत्नशील है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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