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________________ अन्तकृतदशा २६५ हुआ। उसके माता-पिता ने तो बहुत मना किया किन्तु वह न माना। वह महावीर का साधारण भक्त न था। उसे लगा कि भगवान मेरे गाँव के पास आवें और मैं मृत्यु के भय से उन्हें वन्दन करने न जाऊँ तो मेरी भक्ति अवश्य लज्जित होगी। यह सोचकर सुदर्शन रवाना हुआ। मार्ग में उसे अर्जुनमालो मिला। वह उसे मारने के लिए आगे बढ़ा किन्तु सुदर्शन की शान्त मुद्रा देखकर उसका मित्र बन गया। बाद में दोनों भगवान् महावीर के पास पहुँचे । भगवान् का उपदेश सुन कर अर्जुनमाली मुनि हो गया । अन्त में उसने सिद्धि प्राप्त की। इस कथा में एक बात समझ में नहीं आती कि श्रेणिक के पास राजसत्ता व सैनिकबल होते हुए भी वह अजुनमालो को लोगों को मारने से क्यों नहीं रोक सका ? श्रेणिक भगवान् महावीर का असाधारण भक्त कहा जाता है फिर भी वह उन्हें वन्दन करने नहीं गया। सारे नगर में भगवान् का सच्चा भक्त एक सुदर्शन हो साबित हुआ। संभवतः इस कथा का उद्देश्य यही बताना हो कि सच्ची श्रद्धा व भक्ति कितनी दुर्लभ है ! अन्य अंतकृत : ___ छठे वर्ग के पंद्रहवें अध्ययन में अतिमुक्त नामक भगवान् महावीर के एक शिष्य का कथानक है। इस अध्ययन में गांव के चौक अथवा क्रीडास्थल के लिए 'इन्द्रस्थान' शब्द का प्रयोग हुआ है ।। सातवें वर्ग में तेरह अध्ययन हैं । इनमें अंतकृत-स्त्रियों का वर्णन है । आठवें वर्ग में दस अध्ययन हैं। इन अध्ययनों में श्रेणिक को काली आदि .. दस भार्याओं का वर्णन है। इस वर्ग में प्रत्येक अंतकृत-साध्वी के विशिष्ट तप का विस्तृत परिचय दिया गया है। इससे इनकी तपस्या की उग्रता का पता लगता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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