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________________ २४६ यापनीय : दसवें उद्देशक में वाणियग्राम नगर के निवासी सोमिल ब्राह्मण के कुछ प्रश्नों का उत्तर देते हुए भगवान् महावीर ने जवणिज्ज - यापनीय, जत्तायात्रा, अव्वाबाह— अव्याबाघ, फासूर्याविहार - प्रासुकविहार आदि शब्दों का विवेचन किया हैं । दिगम्बर सम्प्रदाय में यापनीय नामक एक संघ है जिसके मुखिया आचार्य शाकटायन थे । प्रस्तुत उद्देशक में आनेवाले 'जवणिज्ज' शब्द के साथ इस यापनीय संघ का सम्बन्ध है । विचार करने पर मालूम होता है कि 'जव णिज्ज' का 'यमनीय' रूप अधिक अर्थयुक्त एवं संगत है जिसका संबंध पाँच यमों के साथ स्थापित होता है । इस प्रकार का कोई अर्थ 'यापनीय' शब्द में से नहीं निकलता । विद्वानों को एतद्विषयक विशेष विचार करने की आवश्यकता है । यद्यपि वर्तमान में यह शब्द कुछ नया एवं अपरिचित सा लगता है किन्तु खारवेल के शिलालेख में 'जवणिज्ज' शब्द का प्रयोग हुआ है जिससे इसकी प्राचीनता एवं प्रचलितता सिद्ध होती है । मास : जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सोमिल द्वारा पूछे गये प्रश्नों का सन्तोषजनक उत्तर प्राप्त होने पर वह भगवान् का श्रमणोपासक हो गया । इस प्रसंग पर 'मास' का विवेचन करते हुए महीनों के जो नाम गिनाये गये हैं वे श्रावण से प्रारंभ कर आषाढ़ तक समाप्त किये गये हैं । इससे मालूम होता है कि उस समय श्रावण प्रथम मास माना जाता रहा होगा एवं आषाढ़ अन्तिम मास । विविध : उन्नीसवें शतक में दस उद्देशक है : लेश्या, गर्भ, पृथ्वी, महास्रव, चरम, द्वीप, भवनावास, निर्वृत्ति, करण और वाणव्यन्तर । बीसवें शतक में भी दस उद्देशक हैं : द्वीन्द्रिय, आकाश, प्राणवध, उपचय, परमाणु, अन्तर, बन्ध, भूमि, चरण और सोपक्रम जीव । प्रथम उद्देशक में दो इन्द्रियों वाले, जीवों की चर्चा है । द्वितीय में आकाशविषयक, तृतीय में हिंसाअहिंसा, सत्य-असत्य आदि विषयक, चतुर्थं में इन्द्रियोपचय विषयक, पंचम में परमाणु पुद्गलविषयक, षष्ठ में दो नरकों एवं दो स्वर्गों के मध्य स्थित पृथ्वीका - यिक आदि विषयक तथा सप्तम में बन्धविषयक चर्चा है अष्टम में कर्मभूमि के सम्बन्ध में विवेचन है । इसमें वर्तमान अवसर्पिणी के गिनाये गये हैं । छठे तीर्थंकर का नाम पद्मप्रभ के बजाय सुप्रभ बताया गया है । इसमें यह भी बताया गया है कि कालिक श्रुत का विच्छेद कब हुआ तथा दृष्टिवाद का विच्छेद कब हुआ ? साथ ही यह भी बताया गया है कि भगवान् । सब तीर्थंकरों के नाम For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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