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________________ व्याख्याप्रज्ञप्ति २३५ जीव भी श्वासोच्छवास लेते हैं ? उत्तर में बताया गया है कि हां, लेते हैं । क्या वायुकाय के जीव भी वायुकाय को ही श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते हैं ? यहां पर वृत्तिकार ने यह स्पष्ट किया है कि जो वायुकाय श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण किया जाता है वह चेतना नहीं अपितु जड अर्थात् पुद्गलरूप होता है । उसकी स्वतन्त्र वर्गणाएं होती हैं जिन्हें श्वासोच्छ्वास-वर्गणा कहते हैं। जमालि-चरित: नवें शतक के तैंतीसवें उद्देशक में जमालि का पूरा चरित्र है। उसमें उसे ब्राह्मणकुंडग्राम से पश्चिम में स्थित क्षत्रियकुंडग्राम का निवासी क्षत्रियकुमार बताया गया है तथा उसके माता-पिता का नाम नहीं दिया गया है। भगवान् महावीर के उसके नगर में आने पर वह उनके दर्शन के लिए गया एवं बोध प्राप्त कर भगवान् का शिष्य बना । बाद में उसका भगवान् के अमुक विचारों से विरोध होने पर उनसे अलग हो गया। इस पूरे वर्णन में कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि जमालि महावीर का जामाता था अथवा उनकी कन्या से उसका विवाह हुआ था। जब वह दीक्षा ग्रहण करता है तब रजोहरण व पडिग्गह अर्थात् पात्र ये दो उपकरण ही लेता है। मुहपत्ती आदि किन्हीं भी अन्य उपकरणों का इनके साथ उल्लेख नहीं है । जब जमालि भगवान् से अलग होता है और उनके अमुक विचारों से भिन्न प्रकार के विचारों का प्रचार करता है तब वह अपने आप को जिन एवं केवली कहता है तथा महावीर के अन्य छद्मस्थ शिष्यों से खुद को भिन्न मानता है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि 'जिन' और 'केवली' शब्द का प्रयोग उस समय के विचारक किस ढंग से करते थे। महावीर से अलग होकर अपनी भिन्न विचारधारा का प्रचार करने वाला गोशालक भी महावीर से यही कहता था कि मैं जिन हूँ, केवली है एवं आपके शिष्य गोशालाक से भिन्न हूँ। जब जमालि यों कहता है कि अब मैं जिन हूँ, केवली हूँ तब महावीर के प्रधान शिष्य इन्द्रभूति गौतम जमालि से कहते हैं कि केवलो का ज्ञान-दर्शन तो पर्वतादि से निरूद्ध नहीं होता। यदि तुम सचमुच केवली अथवा जिन हो तो मेरे इन दो प्रश्नों के उत्तर दो-यह लोक शाश्वत है अथवा अशाश्वत ? यह जीव शाश्वत है ' अथवा अशाश्वत ? ये प्रश्न सुनकर जमालि निरूत्तर हो गया। यह देख कर भगवान् महावीर जमालि से कहने लगे कि मेरे अनेक शिष्य जो कि छद्मस्थ हैं. इन प्रश्नों के उत्तर दे सकते हैं। फिर भी वे तुम्हारी तरह यों नहीं कहते कि हम जिन है, केवली हैं । अन्त में जब जमालि मृत्यु को प्राप्त होता है तब गौतम भगवान् से पूछते हैं कि आपका जमालि नामक कुशिष्य मरकर किस गति में गया ? इसका उत्तर देते हुए महावीर कहते हैं कि मेरा कुशिष्य अनगार जमालि मरकर अधम जाति की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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