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षष्ठ प्रकरण
व्याख्याप्रज्ञप्ति
पांचवें अंग का नाम वियाहपण्णत्ति-व्याख्याप्रज्ञप्ति है। अन्य अंगों की अपेक्षा अधिक विशाल एवं इसीलिए अधिक पूज्य होने के कारण इसका दूसरा नाम भगवती भी प्रसिद्ध है । विद्यमान व्याख्याप्रज्ञप्ति का ग्रंथान १५००० श्लोकप्रमाण है । इसका प्राकृत नाम वियाहपण्णत्ति है किन्तु लेखकों-प्रतिलिपिकारों की असावधानी के कारण कहीं-कहीं विवाहपण्णत्ति तथा विबाहपण्णत्ति पाठ भी उपलब्ध होता है। इस प्रकार वियाहपण्णत्ति, विवाहपण्णत्ति एवं विबाहपण्णत्ति इन तीन पाठों में वियाहपण्णत्ति पाठ ही प्रामाणिक एवं प्रतिष्ठित है । जहाँ-कहीं यह नाम संस्कृत में आया है, सर्वत्र व्याख्याप्रज्ञप्ति शब्द का ही प्रयोग हुआ है। वृत्तिकार अभयदेवसूरि ने इन तीनों पाठों में से वियाहपण्णत्ति पाठ की व्याख्या
१. (अ) अभयदेवकृत वृत्तिसहित-आगमोदय समिति, बम्बई सन् १९१८
१९२१; धनपतसिंह बनारस, सन् १८८२; ऋषभदेवजी केशरीमलजी
जैन श्वे० संस्था, रतलाम, सन् १९३७-१९४० (१४ शतक तक). (आ) १५ वें शतक का अंग्रेजी अनुवाद-Hoernle, Appendix to
उपासकदशा,Bibliotheca Indica, Calcutta, 1885-1888. (इ) षष्ठ शतक तक अभयदेवकृत वृत्ति व उसके गुजराती अनुवाद के साथ
बेचरदास दोशी, जिनागम प्रकाशक सभा, बम्बई, वि, सं. १९७४१९७९; शतक ७-१५ मूल व गुजराती अनुवाद-भगवानदास दोशी, गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद, वि. सं. १९८५; शतक १६-४१ मूल व गुजराती अनुवाद-भगवान दास दोशी, जैन साहित्य प्रकाशन ट्रस्ट,
अहमदाबाद, वि. सं. १९८८. (ई) भगवतीसार : गुजराती छायानुवाद-गोपालदास जीवाभाई पटेल, जैन
साहित्य प्रकाशन समिति, अहमदाबाद, सन् १९३८. (उ) हिन्दी विषयानुवाद (शतक १-२०)-मदनकुमार मेहता, श्रुत-प्रकाशन
मन्दिर, कलकत्ता, वि. सं. २०११. (ऊ) संस्कृत व्याख्या व उसके हिन्दी-गुजराती अनुवाद के साथ-मुनि घासी
लाल, जैन शास्त्रोद्धार समिति, राजकोट, सन् १९६१. (ऋ) हिन्दी अनुवाद के साथ-अमोलक ऋषि, हैदराबाद, वि. सं. २४४६.
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