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________________ सूत्रकृतांग २०९ में अनेक विशेषण प्रयुक्त हुए हैं। वह जैन श्रमणोपासक होने के कारण जैनतत्त्वज्ञान से पूर्ण परिचित था एवं तद्विषयक सारी बातें निश्चिताया समझता था । उसका द्वार दान के लिए हमेशा खुला रहता था। उसे राजा के अन्तःपुर में भी जाने-आने की छूट थी अर्थात् वह इतना विश्वासपात्र था कि राजभंडार में तो क्या रानियों के निवास स्थान में भी उसका प्रवेश अनुमत था। ___ नालंदा के ईशानकोण में लेवद्वारा निर्मापित सेसदविया-शेषद्रव्या नामक एक विशाल उदकशाला-प्याऊ थी। शेषद्रव्या का अर्थ बताते हुए वृत्तिकार ने लिखा है कि लेव ने जब अपने रहने के लिए मकान बंधवाया तब उसमें से बची हुई सामग्री ( शेषद्रव्य ) द्वारा इस उदकशाला का निर्माण करवाया। अतएव इसका नाम शेषद्रव्या रखा। इस उदकशाला के ईशानकोण में हत्थिजामहस्तियाम नाम का एक वनखण्ड था। यह वनखण्ड बहुत ठंडा था। इस वनखण्ड में एक समय गौतम इन्द्रभूति ठहरे हुए थे। उस समय मेयज्जगोत्रीय पेढालपुत्त उदय नामक एक पावपित्यीय निग्रन्थ गौतम के पास आया और बोला-हे आयुष्मान् गौतम ! मैं कुछ पूछना चाहता हूँ। आप उसका यथाश्रुत एवं यथादर्शित उत्तर दीजिए। गौतम ने कहा-हे आयुष्मन् ! प्रश्न सुनने व समझने के बाद तद्विषयक चर्चा करूंगा। उदय निग्रन्थ ने पूछा-हे आयुष्मान् गौतम ! आपके प्रवचन का उपदेश देने वाले कुमारपुत्तिय-कुमारपुत्र नामक श्रमण निग्रंन्थ श्रावक को जब प्रत्याख्यान-त्याग करवाते हैं तब यों कहते हैं कि अभियोग' को छोड़ कर गृहपतिचौरविमोक्षणन्याय के अनुसार तुम्हारे स १. अभियोग अर्थात् राजा की आज्ञा; गण की आज्ञा-गणतन्त्रात्मक राज्य की आज्ञा, बलवान् की आज्ञा, माता-पिता आदि की आज्ञा तथा आजीविका का भय । इन परिस्थितियों की अनुपस्थिति में त्रस प्राणियों की हिंसा का त्याग करना। २. गृहपतिचौरविमोक्षणन्याय इस प्रकार है :-किसी गृहस्थ के छः पुत्र थे। वे छहों किसी अपराध में फंस गये । राजा ने उन छहों को फांसी का दण्ड दिया। यह जानकर वह गृहस्थ राजा के पास आया और निवेदन करने लगा-महाराज ! यदि मेरे छहों पुत्रों को फांसी होगी तो मैं अपुत्र हो जाऊंगा। मेरा वंश आगे कैसे चलेगा ? मेरे वंश का समूल नाश हो जायगा। कृपया पांच को छोड़ दीजिये । राजा ने उसकी यह बात नहीं मानी। तब उसने चार को छोड़ने की बात कही। अब राजा ने यह भी स्वीकार नहीं किया तब उसने क्रमशः तीन, दो और अन्त में एक पुत्र को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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