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________________ १९२ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास का निषेध किया । भगवान् महावीर के पूर्व चली आने वाली भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा चतुर्यामप्रधान थी। उसमें मैथुनविरमण व्रत का स्पष्ट शब्दों में समावेश करने का कार्य भगवान् महावीर ने किया। इसी प्रकार उन्होंने उसमें रात्रिभोजनविरमण व्रत का भी अलग से समावेश किया । कुशील : सातवां अध्ययन कुशीलविषयक है। इस अध्ययन में ३० गाथाएँ हैं । कुशील का अर्थ है अनुपयुक्त अथवा अनुचित आचार वाला। जैन परम्परा की दृष्टि से जिनका आचार शुद्ध नहीं है अर्थात् जो असंयमी हैं उनमें से कुछ का थोड़ा-बहुत परिचय प्रस्तुत अध्ययन में मिलता है। इन कुशीलों में चूर्णिकार ने गौतम सम्प्रदाय, गोबतिक सम्प्रदाय, रंडदेवता सम्प्रदाय (चंडी देवता सम्प्रदाय) वारिभद्रक सम्प्रदाय, अग्निहोमवादियों तथा जलशौचवादियों का समावेश किया है । वृत्तिकार ने भी इनकी मान्यताओं का उल्लेख किया है। औपपातिक सूत्र में इस प्रकार के अनेक कुशीलों का नामोल्लेख है। प्रस्तुत अध्ययन में सूत्रकार ने तीन प्रकार के कुशोलों की चर्चा की है : (१) आहारसंपज्जण अर्थात् आहार में मधुरता उत्पन्न करने वाले लवण आदि के त्याग से मोक्ष मानने वाले, (२) सोओदगसेवण अर्थात् शीतल जल के सेवन से मोक्ष मानने वाले, (३) हुएण अर्थात् होम से मोक्ष मानने वाले । इनकी मान्यताओं का उल्लेख करते हुए ग्रन्थकार ने विविध दृष्टान्तों द्वारा इन मतों का खण्डन किया है एवं यह प्रतिपादित किया है कि मोक्ष के प्रतिबंधक कारणोंराग, द्वेष, काम, क्रोध, लोभ आदि का अंत करने पर ही मोक्ष प्राप्त हो सकता है। वीर्य अर्थात् पराक्रम : __ आठवां अध्ययन वीर्यविषयक है। इसमें वीर्य अर्थात् पराक्रम के स्वरूप का विवेचन है। चूणि की वाचना के अनुसार इसमें २७ गाथाएँ हैं जबकि वृत्तिसंमत वाचना के अनुसार गाथासंख्या २६ ही है । चणि में १९ वीं गाथा अधिक है । इस अध्ययन में चूणि की वाचना व वृत्ति की वाचना में बहुत अन्तर है। नियुक्तिकार ने वीर्य की व्याख्या करते हुए कहा है कि वीर्य शब्द सामर्थ्य-पराक्रम बल-शक्ति का सूचक है। वीर्य अनेक प्रकार का है। जड़ वस्तु में वोर्य होता है एवं चेतन वस्तु में भी। चंदन, कंबल, शस्त्र, औषध आदि की विविध शक्तियों का अनुभव हम करते ही हैं। यह जड़ वस्तु का वीर्य हैं। शरीरबल, इंद्रियबल, मनोबल, उत्साह, धैर्य, क्षमा आदि चेतन वस्तु की शक्तियां हैं। सूत्रकार कहते हैं कि वीर्य दो प्रकार का है : अकर्मवीर्य अर्थात पंडितवीर्य ओर कर्मवीर्य अर्थात् बालवीर्य । संयमपरायण का वीर्य पंडितवीर्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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