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विद्वानों के सहयोग से लिखा जाय । उसमें गहरे चिन्तनपूर्वक समीक्षा कदाचित् सम्भव न हो तो भी ग्रन्थ का सामान्य विषय-परिचय दिया जाय, जिससे कितने विषय के कौन से ग्रन्थ हैं-इसका तो पता विद्वानों को हो ही जायगा और फिर जिज्ञासु विद्वान् अपनी रुचि के ग्रन्थ स्वयं पढ़ने लगेंगे।
इस विचार को स्व० डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल ने गति दी और यह निश्चय हुआ कि ई० सन् १९५३ में अहमदाबाद में होने वाले प्राच्य विद्या परिषद् के सम्मेलन के अवसर पर वहाँ विद्वानों की उपस्थिति होगी। अतएव उस अवसर का लाभ उठाकर एक योजना विद्वानों के समक्ष रखी जाय । इसी विचार से योजना का पूर्वरूप वाराणसी में तैयार कर लिया गया और अहमदाबाद में उपस्थित निम्न विद्वानों के परामर्श से उसको अन्तिम रूप दिया गया :१. मुनि श्री पुण्यविजयजी २. आचार्य जिनविजयजी ३. पं: सुखलालजी संघवी ४. पं० बेचरदासजी दोशी ५. डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल ६. डॉ० ए० एन० उपाध्ये ७. डॉ० पी० एल० वैद्य ८. डॉ. मोतीचन्द ९. श्री अगरचन्द नाहटा १०. डॉ० भोगीलाल सांडेसरा ११. डॉ० प्रबोध पण्डित १२. लॉ० इन्द्रचन्द्र शास्त्री १३. प्रो० पद्मनाभ जैनी १४. श्री बालाभाई वीरचंद देसाई जयभिक्खु १५. श्री परमानन्द कुंवरजी कापड़िया
यहाँ यह भी बताना जरूरी है कि वाराणसी में योजना सम्बन्धी विचार जब चल रहा था तब उसमें सम्पूर्ण सहयोग श्री पं० महेन्द्रकुमारजी का था और उन्हीं की प्रेरणा से पण्डितद्वय श्री कैलाशचन्द्रजी शास्त्री तथा श्री फुलचन्द्रजी शास्त्री भी सहयोग देने को तैयार हो गये थे। किन्तु योजना का पूर्वरूप जब तैयार हुआ तो इन तीनों पण्डितों ने निर्णय किया कि हमें अलग हो जाना चाहिए। तदनुसार उनके सहयोग से हम वञ्चित ही रहे-इसका दुःख सबसे
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