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________________ अंग ग्रन्थों का अन्तरंग परिचय : आचारांग १६७ दिव्य प्रकाश फैल गया । देवों ने अमृत की तथा अन्य सुगन्धित पदार्थों व रत्नों की वर्षा की । भगवान् का सूतिकर्म देव-देवियों ने सम्पन्न किया। भगवान् के त्रिशला के गर्भ में आने के बाद सिद्धार्थ का घर धन, सुवर्ण आदि से बढ़ने लगा अतः माता पिता ने जातिभोजन कराकर खूब धूमधाम के साथ भगवान् का वर्धमान नाम रखा । भगवान् पाँच प्रकार के अर्थात् शब्द, स्पर्श, रस, रूप व गंधमय कामभोगों का भोग करते हुए रहने लगे। भगवान् के तीन नाम थे : वर्धमान, श्रमण व महावीर । इनके पिता के भी तीन नाम थे : सिद्धार्थ, श्रेयांस व जसंस । माता के भी तीन नाम थे : त्रिशला, विदेहदता व प्रियकारिणी । इनके पितव्य अर्थात् चाचा का नाम सुपार्श्व, ज्येष्ठ भ्राता का नाम नंदिवर्धन, ज्येष्ठ भगिनी का नाम सुदर्शना व भार्या का नाम यशोदा था। इनकी पुत्री के दो नाम थे : अनवद्या व प्रियदर्शना।' इनकी दौहित्री के भी दो नाम थे : शेषवती व यशोमती । इनके मातापिता पाश्र्वापत्य अर्थात् पार्श्वनाथ के अनुयायी थे। वे दोनों श्रावक धर्म का पालन करते थे। महावीर तीस वर्ष तक सागारावस्था में रहकर मातापिता के स्वर्गवास के बाद अपनी प्रतिज्ञा पूरी होने पर समस्त रिद्धिसिद्धि का त्याग कर अपनी संपत्ति को लोगों में बाँट कर हेमन्त ऋतु की मृगशीर्ष-अगहन कृष्णा दशमी के दिन हस्तोत्तरा नक्षत्र में अनगार वृत्ति वाले हुए। उस समय लोकान्तिक देवों ने आकर भगवान् महावीर से कहा कि भगवन् ! समस्त जीवों के हितरूप तीर्थ का प्रवर्तन कीजिये । बाद में चारों प्रकार के देवों ने आकर उनका दीक्षा-महोत्सव किया। उन्हें शरीर पर व शरीर के नीचे के भाग पर फंक मारते ही उड़ जाय ऐसा पारदर्शक हंसलक्षण वस्त्र पहनाया, आभूषण पहनाये और पालकी में बैठा कर अभिनिष्क्रमण-उत्सव किया । भगवान् पालकी में सिंहासन पर बैठे। उनके दोनों ओर शक्र और ईशान इन्द्र खड़े-खड़े चँवर डुलाते थे। पालकी के अग्रभाग अर्थात् पूर्वभाग को सुरों ने, दक्षिणभाग को असुरों ने, पश्चिम भाग को गरुडों ने एवं उत्तरभाग को नागों ने उठाया । उत्तरक्षत्रियकुण्डपुर के बीचोबीच होते हुए भगवान् ज्ञातखण्ड नामक उद्यान में आये । पालकी से उतर कर सारे आभूषण निकाल दिये। बाद में भगवान् के पास घुटनों के बल बैठे हुए वैश्रमणी देवों ने हंसलक्षण कपड़े में वे आभूषण ले लिये । तदनन्तर भगवान् ने अपने दाहिने हाथ से सिर को दाहिनी ओर के व बायें हाथ से बायीं ओर १. ज्येष्ठ भगिनी व पुत्री के नामों में कुछ गड़बड़ी हुई मालूम होती है। विशेषा वश्यकभाष्यकार ने ( गाथा २३०७ ) महावीर की पुत्री का नाम ज्येष्ठा, सुदर्शना व अनवद्यांगी बताया है जब कि आचारांग में महावीर की बहिन का नाम सुदर्शना तथा पुत्री का नाम अनवद्या व प्रियदर्शना बताया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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