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________________ १३० जैन साहित्य का बृहद् इतिहास महाप्रभावक आचार्य का सम्पूर्ण जीवन-वृत्तांत उपलब्ध नहीं होता। इन्होंने किन परिस्थितियों में आगमों को ग्रन्थबद्ध किया ? उस समय अन्य कौन श्रुतधर पुरुष विद्यमान थे ? वलभीपुर के संघ ने उनके इस कार्य में किस प्रकार को सहायता की ? इत्यादि प्रश्नों के समाधान के लिए वर्तमान में कोई भी सामग्री उपलब्ध नहीं है । आश्चर्य तो यह है कि विक्रम की चौदहवीं शताब्दी में होनेवाले आचार्य प्रभाचन्द्र ने अपने प्रभावक-चरित्र में अन्य अनेक महाप्रभावक पुरुषों का जीवन चरित्र दिया है । किन्तु इनका कहीं निर्देश भी नहीं किया है । __देवद्धिगणिक्षमाश्रमण ने आगमों को ग्रन्थबद्ध करते समय कुछ महत्त्वपूर्ण बातें ध्यान में रखीं। जहाँ जहाँ शास्त्रों में समान पाठ आये वहाँ-वहाँ उनकी पुनरावृत्ति न करते हुए उनके लिए एक विशेष ग्रन्थ अथवा स्थान का निर्देश कर दिया, जैसे : 'जहा उववाइए' 'जहा पण्णवणाए' इत्यादि । एक ही ग्रंथ में वही बात बार-बार आने पर उसे पुनः पुनः न लिखते हुए 'जाव' शब्द का प्रयोग करते हुए उसका अन्तिम शब्द लिख दिया, जैसे : ‘णागकूमारा जाव विहरंति, तेणं कालेणं जाव परिसा णिग्गया' इत्यादि । इसके अतिरिक्त उन्होंने महावीर के बाद की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएँ भी आगमों में जोड़ दीं। उदाहरण के लिए स्थानांग में उल्लिखित दस गण भगवान् महावीर के निर्वाण के बहुत समय बाद उत्पन्न हुए । यही बात जमालि को छोड़कर शेष निह्नवों के विषय में भी कही जा सकती है। पहले से चली आने वाली माथुरी व वालभी इन दो वाचनाओं में से देवद्धिगण ने माथुरी वाचना को प्रधानता दी। साथ ही वालभी वाचना के पाठभेद को भी सुरक्षित रखा । इन दो वाचनाओं में संगति रखने का भी उन्होंने भरसक प्रयत्न किया एवं सबका समाधान कर माथुरो वाचना को प्रमुख स्थान दिया। महाराज खारवेल : महाराज खारवेल ने भी अपने समय में जैन प्रवचन के समुद्धार के लिए श्रमण-श्रमणियों एवं श्रावक-श्राविकाओं का बृहद् संघ एकत्र किया। खेद है कि इस सम्बन्ध में किसी भी जैन ग्रन्थ में कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं है। महाराज खारवेल ने कलिंगगत खंडगिरि व उदयगिरि पर एतद्विषयक जो विस्तृत लेख खुदवाया है उसमें इस सम्बन्ध में स्पष्ट उल्लेख है । यह लेख पूरा प्राकृत में है । इसमें कलिंग में भगवान ऋषभदेव के मंदिर की स्थापना व अन्य अनेक घटनाओं का उल्लेख है। वर्तमान में उपलब्ध 'हिमवंत थेरावली' नामक प्राकृत-संस्कृतमिश्रित पट्टावली में महाराज खारवेल के विषय में स्पष्ट उल्लेख है कि उन्होंने प्रवचन का उद्धार किया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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