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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
भिक्षाशुद्धि, ईर्याशुद्धि, उत्सर्गशुद्धि, शयनासनशुद्धि तथा विनयशुद्धि — इन आठ प्रकार की शुद्धियों का विधान है ।
सचेलक परम्परा के समवायांग सूत्र में बताया गया है निर्ग्रन्यसम्बन्धी आचार, गोचर, विनय, वैनयिक, स्थान, गमन, चंक्रमण, प्रमाण, योगयोजना, भाषा, समिति, गुप्ति, शय्या, उपधि, आहार- पानीसम्बन्धी उद्गम, उत्पाद, एषणाविशुद्धि एवं शुद्धशुद्धग्रहण, व्रत, नियम, तप, उपधान, ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार तथा वीर्याचारविषयक सुप्रशस्त विवेचन आचारांग में उपलब्ध है ।
नंदी सूत्र में बताया गया है कि आचारांग में श्रमण निर्ग्रन्थों के आचार, गोचर विनय, वैनयिक, शिक्षा, भाषा, अभाषा, चरणकरण, यात्रा, मात्रा तथा विविध अभिग्रहविषयक वृत्तियों एवं ज्ञानाचारादि पाँच प्रकार के आचार पर प्रकाश डाला गया है ।
समवायांग व नन्दी सूत्र में आचारांग के विषय का निरूपण करते हुए प्रारंभ में ही 'आयार-गोयर' ये दो शब्द रखे गये हैं । ये शब्द आचारांग के प्रारंभिक अध्ययनों में नहीं मिलते। विमोह अथवा विमोक्ष नामक अष्टम अध्ययन के प्रथम उद्देशक में 'आयार-गोयर' ऐसा उल्लेख मिलता है । इसी अध्ययन के दूसरे उद्देशक में 'आयारगोयरं आइक्खे' इस वाक्य में भी आचार- गोचरविषयक निरूपण है । अष्टम अध्ययन में साधक श्रमण के खानपान तथा वस्त्रपात्र के विषय
(ऋ) गुजराती अनुवाद - रवजीभाई देवराज, जैन प्रिंटिंग प्रेस, अहमदाबाद, सन् १९०२ व १९०६.
(ए) गुजराती छायानुवाद -गोपालदास जीवाभाई पटेल, नवजीवन कार्यालय, अहमदाबाद, वि० सं० १९९२.
( ऐ ) हिन्दी अनुवाद सहित - अमोलकऋषि, हैदराबाद, वी० सं० २४४६. ( ओ ) प्रथम श्रुतस्कन्ध का गुजरातो अनुवाद - मुनि सौभाग्यचन्द्र (संतबाल ) महावीर साहित्य प्रकाशन मंदिर, अहमदाबाद, सन् १९३६.
( औ ) संस्कृत व्याख्या व उसके हिन्दी - गुजराती अनुवाद के साथ - मुनि घासीलाल, जैन शास्त्रोद्धार समिति, राजकोट, सन् १९५७.
( अ ) हिन्दी छायानुवाद - गोपालदास जीवाभाई पटेल, श्वे. स्था. जैन कॉन्फरेंस, बम्बई, वि० सं० १९९४.
( अ ) प्रथम श्रुतस्कन्ध का बंगाली अनुवाद - हीराकुमारी, जैन श्वे० तेरापंथी महासभा, कलकत्ता, वि० सं० २००९.
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