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________________ १०४ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास की संगति बिठाने का आपेक्षिक प्रयास किया है। फिर भी यह मानना विशेष उपयुक्त एवं बुद्धिग्राह्य है कि सर्वप्रथम आचारांग की रचना हुई। 'पूर्व' शब्द के अर्थ का आधार लेकर यह कल्पना को जाती है कि पूर्वो की रचना पहले हुई, किन्तु यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि इनमें भी आचारांग आदि शास्त्र समाविष्ट ही हैं । अतः पूर्त में भी सर्वप्रथम आचार की व्यवस्था न की गई हो, ऐसा कैसे कहा जा सकता है ? 'पूर्व' शब्द से केवल इतना ही ध्वनित होता है कि उस संघप्रवर्तक के सामने कोई पूर्व परम्परा अथवा पूर्व परम्परा का साहित्य विद्यमान था जिसका आधार लेकर उसने समयानुसार अथवा परिस्थिति के अनुसार कुछ परिवर्तन के साथ नई आचार-योजना इस प्रकार तैयार की कि जिसके द्वारा नवनिर्मित संघ का आध्यात्मिक विकास हो सके । भारतीय साहित्य में भाषा आदि की दृष्टि से वेद सबसे प्राचीन हैं, ऐसा विद्वानों का निश्चित मत है। पुराण आदि भाषा वगैरह की दृष्टि से बाद की रचना मानी गई है। ऐसा होते हुए भी 'पुराण' शब्द द्वारा जो प्राचीनता का भास होता है उसके आधार पर वायुपुराण में कहा गया है कि ब्रह्मा ने सब शास्त्रों से पहले पुराणों का स्मरण किया। उसके बाद उनके मुख से वेद निकले ।' जैन परम्परा में संभवतः इसी प्रकार की कल्पना के आधार पर पूर्वो को प्रथम स्थान दिया गया हो। चूंकि पूर्व हमारे सामने नहीं हैं अतः उनकी रचना आदि के विषय में विशेष कुछ नहीं कहा जा सकता। आचारांग को सर्वप्रथम स्थान देने में प्रथम एवं प्रमुख हेतु है उसका विषय । दूसरा हेतु यह है कि जहाँ-जहाँ अंगों के नाम आये हैं वहाँ-वहाँ मूल में अथवा वृत्ति में सबसे पहले आचारांग का ही नाम आया है। तीसरा हेतु यह है कि इसके नाम के प्रथम उल्लेख के विषय में किसी ने कोई विसंवाद अथवा विरोध खड़ा नहीं किया। __ आचारांग के बाद जो सूत्रकृतांग आदि नाम आये हैं उनके क्रम की योजना किसने किस प्रकार की, इसकी चर्चा के लिए हमारे पास कोई उल्लेखनीय साधन नहीं हैं। इतना अवश्य है कि सचेलक व अचेलक दोनों परम्पराओं में अंगों का एकही क्रम है । इसमें आचारांग का नाम सर्वप्रथम आता है व बाद में सूत्रकृतांग आदि का। १. प्रथमं सर्वशास्त्राणां पुराणं ब्रह्मणा स्मृतम् । अनन्तरं च वक्त्रेभ्यो वेदास्तस्य विनिःसृताः ।। --वायुपुराण (पत्राकार), पत्र २. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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