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________________ १०२ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गया है। वहाँ केवल इतना ही बताया गया है कि आचारांग के दो श्रुतस्कन्ध हैं, पचीस अध्ययन हैं, पचासी उद्देशक हैं, पचासी समुद्देशक है, अठारह हजार पद हैं, संख्येय अक्षर हैं। इस पाठ को देखते हुए यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अठारह हजार पद पूरे आचारांग के अर्थात् आचारांग के दोनों श्रुतस्कन्धों के हैं, किसी एक श्रु तस्कन्ध के नहीं । जिस प्रकार पचीस अध्ययन, पचासी उद्देशक आदि दोनों श्रुतस्कन्धों के मिलाकर है उसी प्रकार अठारह हजार पद भी दोनों श्रुतस्कन्धों के मिलाकर ही हैं । पद का अर्थ : पद क्या है ? पद का स्वरूप बताते हुए विशेषावश्यक भाष्यकार' कहते हैं कि पद अर्थ का वाचक एवं द्योतक होता है। बैठना, बोलना, अश्व, वृक्ष इत्यादि पद वाचक हैं। प्र, परि, च, वा इत्यादि पद द्योतक है । अथवा पद के पांच प्रकार हैं : नामिक, नैपातिक, औपसर्गिक, आख्यातिक व मिश्र । अश्व, वृक्ष आदि नामिक हैं। खलु, हि इत्यादि नैपातिक हैं। परि, अप, अनु, आदि औपसर्गिक हैं । दौड़ता है, जाता है, आता है इत्यादि आख्यातिक हैं। संयत, प्रवर्धमान, निवर्तमान आदि पद मिश्र हैं। इसी प्रकार अनुयोगद्वारवृत्ति', अगस्त्यसिंहविरचित दशवैकालिकचूणि, हरिभद्र कृत दशवकालिकवृत्ति, शीलांककृत आचारांगवृत्ति' आदि में पद का सोदाहरण स्वरूप बताया गया है । प्रथम कर्मग्रन्थ की सातवीं गाथा के अन्तर्गत पद की व्याख्या करते हुए देवेन्द्रसूरि कहते हैं :-"पदं तु अर्थसमाप्तिः इत्याधुक्तिसद्भावेऽपि येन केनचित् पदेन अष्टादशपदसहस्रादिप्रमाणा आचारादिग्रन्था गोयन्ते तदिह गृह्यते, तस्यैव द्वादशाङ्गश्रुतपरिमाणेऽधिकृतत्वात् श्रुतभेदानामेव चेह प्रस्तुतत्वात् । तस्य च पदस्य तथाविधाम्नायाभावात् प्रमाणं न ज्ञायते ।" अर्थात् अर्थसमाप्ति का नाम पद है किन्तु प्रस्तुत में जिस किसी पद से आचारांग आदि ग्रंथों के अठारह हजार एवं यथाक्रम अधिक पद समझने चाहिए । ऐसे ही पद की इस श्रु तज्ञानरूप द्वादशांग के परिमाण में चर्चा है। इस प्रकार के पद के परिमाण के सम्बन्ध में हमारे पास कोई परम्परा नहीं है कि जिससे पद का निश्चित स्वरूप जाना जा सके। १. विशेषावश्यकभाष्य, गा. १००३, पृ. ४६७. २. पृ० २४३-४. ३. पृ० ९. ४. प्रथम अध्ययन की प्रथम गाथा. ५. प्रथम श्रुतस्कन्ध का प्रथम सूत्र. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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