SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अंग ग्रन्थों का बाह्य परिचय १०१ १. पूर्व का नाम २. पदसंख्या ३. किस ग्रन्थ में निर्देश ४. अस्तिनास्तिप्रवाद साठ लाख पद धवला, जयधवला, गोम्मट सार एवं अंगपण्णत्ति ५. ज्ञानप्रवाद एक कम एक करोड़ पद ६. सत्यप्रवाद एक करोड़ छः पद ७. आत्मप्रवाद छब्बीस करोड़ पद ८. कर्मप्रवाद एक करोड़ अस्सी लाख पद ९. प्रत्याख्यान चौरासी लाख पद १०. विद्यानुवाद-विद्यानु- एक करोड़ दस लाख पद प्रवाद ११. कल्याण (अवन्ध्य) छब्बीस करोड़ पद १२. प्राणवाद-प्राणावाय (प्राणायु) तेरह करोड़ पद १३. क्रियाविशाल नौ करोड़ पद १४. लोकबिन्दुसार बारह करोड़ पचास लाख पद पूर्वो की पदसंख्या में दोनों परम्पराओं में अत्यधिक साम्य है। ग्यारह अंगों की पदसंख्या में विशेष भेद है। सचेलक परम्परा में यह संख्या प्रथम अंग से प्रारम्भ होकर आगे क्रमशः दुगनी-दुगुनी होती गई मालम होती है। अचेलक परम्परा के उल्लेखों में ऐसा नहीं है। वर्तमान में उपलब्ध अंगसूत्रों को पदसंख्या उपर्युक्त दोनों प्रकार की पदसंख्या से भिन्न है । प्रथम अंग में अठारह हजार पद बताये गये हैं। आचारांग (प्रथम अंग) के दो विभाग हैं : प्रथम श्रुतस्कन्ध व पांच चूलिकाओं सहित द्वितीय श्रुतस्कन्ध । इनमें से पांचवीं चूलिका निशीथ सूत्ररूप एक स्वतन्त्र ग्रंथ ही है। अतः यह यहाँ अभिप्रेत नहीं है । दूसरे शब्दों में यहां केवल चार चूलिकाओं सहित द्वितीय श्रुतस्कन्ध ही विवक्षित है। अब प्रश्न यह है कि उपयुक्त अठारह हजार पद दोनों श्रुतस्कंधों के हैं अथवा केवल प्रथम श्रुतस्कन्ध के ? इस विषय में आचारांग-नियुक्तिकार, आचारांग-वृत्तिकार, समवायांग वृत्तिकार एवं नन्दि-वृत्तिकार-ये चारों एकमत हैं कि अठारह हजार पद केवल प्रथम श्रुतस्कन्ध के हैं । द्वितीय श्रुतस्कन्ध को पदसंख्या अलग ही है। समवायांग व नन्दी सूत्र के मूलपाठ में जहाँ पदसंख्या बताई गई है वहाँ इस प्रकार का कोई स्पष्टीकरण नहीं किया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy