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जन साहित्य का बृहद् इतिहास सुखावह । इनमें से आठवाँ व नववा नाम दृष्टिवाद के प्रकरणविशेष के सूचक है। इन्हें औपचारिक रूप से दष्टिवाद के नामों में गिनाया गया है। अंगों का पद-परिमाण :
अंगसूत्रों का पद-परिमाण दोनों परम्पराओं के ग्रन्थों में उपलब्ध है। सचेलक परम्परा के ग्रन्थ समवायांग, नन्दी आदि में अंगों का पद-परिमाण बताया गया है। इसी प्रकार अचेलक परम्परा के धवला, गोम्मटसार आदि ग्रन्थों में अंगों का पद-परिमाण उपलब्ध है। इसे विभिन्न तालिकाओं द्वारा यहाँ स्पष्ट किया जाता है :
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