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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास दशा ७. उवासगदसाओ उवासगदसाओ उवासगदसाओ उपासकाध्ययनदशा ८. अन्तगडदसाओ अन्तगडदसाओ अन्तगडदसाओ अन्तकृद्दशा ९. अणुत्तरोववाइय- अणुत्तरोववाइय- अणुत्तरोववाइय- अनुत्तरोपपातिक दसाओ दसाओ दसाओ १०. पण्हावागरणाइं पण्हावागरणाइं पण्हावागरणाइं । प्रश्नव्याकरणम् ११. विवागसुळे विवागसुअं विवागसुअं विपाकश्रुतम् १२. दिट्टिवा दिठिवाओ दिठिवाओ दृष्टिपातः इन नामों में कोई विशेष भेद नहीं है । जो थोड़ा भेद दिखाई देता है वह केवल विभक्ति के प्रत्यय अथवा एकवचन-बहुवचन का है । पंचम अंग का संस्कृत नाम व्याख्याप्रज्ञप्ति है । इसे देखते हुए उसका प्राकृत नाम वियाहपन्नत्ति होना चाहिए जबकि सर्वत्र प्रायः विवाहपन्नति रूप ही देखने को मिलता है। प्रतिलिपि-लेखकों की असावधानी व अर्थ के अज्ञान के कारण ही ऐसा हुआ मालूम होता है। अति प्राचीन ग्रन्थों में वियाहपन्नति रूप मिलता भी है जो कि व्याख्याप्रज्ञप्ति का शुद्ध प्राकृत रूप है । ___ संस्कृत ज्ञातधर्मकथा व प्राकृत नायाधम्मकहा अथवा णायाधम्मकहा में कोई अन्तर नहीं है । 'ज्ञात' का प्राकृत में 'नाय' होता है एवं समास में 'दीर्घह्रस्वी मिथो वृत्तौ' (८.१४-हेमप्रा० व्या०) इस नियम द्वारा 'नाय' के ह्रस्व 'य' का दीर्घ 'या' होने पर 'नाया' हो जाता है । अचेलक परम्परा में नायाधम्मकहा के बजाय ज्ञातृधर्मकथा, ज्ञातृकथा, नाहस्स धम्मकहा, नाहधम्मकहा आदि नाम प्रचलित हैं । इन शब्दों में नाममात्र का अर्थभेद है । ज्ञातधर्मकथा अथवा ज्ञाताधर्मकथा का अर्थ है जिनमें ज्ञात अर्थात् उदाहरण प्रधान हों ऐसी धर्मकथाएँ । अथवा जिस ग्रन्थ में ज्ञातों वाली अर्थात् उदाहरणों वाली एवं धर्मवाली कथाएँ हों वह ज्ञाताधर्मकथा है। ज्ञातृधर्मकथा का अर्थ है जिसमें ज्ञात अर्थात् ज्ञाता अथवा ज्ञातवंश के भगवान् महावीर द्वारा कही हुई धर्मकथाएँ हों वह ग्रन्थ । यही अर्थ ज्ञातृकथा का भी है । नाहस्स धम्मकहा अथवा नाहधम्मकहा भी नायधम्मकहा का ही एकरूप मालूम होता है। उच्चारण की गड़बड़ी व लिपि-लेख के प्रमाद के कारण 'नाय' शब्द 'नाह' के रूप में परिणत हो गया प्रतीत होता है। भगवान् महावीर के वंश का नाम नाय-नात-ज्ञात-ज्ञातृ है। ज्ञातृवंशोत्पन्न भगवान् महावीर द्वारा प्रतिपादित धर्मकथाओं के आधार पर भी ज्ञातृधर्मकथा आदि नाम फलित किये जा सकते हैं। द्वितीय अंग का संस्कृत नाम सूत्रकृत है। राजवातिक आदि में भी इसी नाम का निर्देश है। धवला एवं जयधवला में सूदयद, गोम्मटसार में सुद्दयड तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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