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________________ अंग ग्रन्थों का बाह्य परिचय ९१ 1 ७. आत्मप्रवाद, ८. कर्मप्रवाद, ९. प्रत्याख्यान १०. विद्यानुप्रवाद, ११. कल्याण, १२. प्राणावाय, १३. क्रियाविशाल, १४. लोकबिन्दुसार । इसी प्रकार अकलंककृत तत्त्वार्थराजवार्तिक में फिर थोड़ा परिवर्तन है । इसमें अन्तकृद्दशम् एवं अनुत्तरोपपादिकशम् के स्थान पर फिर अन्तकृद्दशा एवं अनुत्तरौपपादिकदशा का प्रयोग हुआ है । श्रुतसागरकृत वृत्ति में ज्ञातृधर्मकथा के स्थान पर केवल ज्ञातृकथा का प्रयोग है । इसमें अन्तकृद्दशम् एवं अनुत्तरौपपादिकदशम् नाम मिलते हैं । गोम्मटसार नामक ग्रन्थ में द्वितीय अंग का नाम सुद्दयड है, पंचम अङ्ग का नाम विक्खापणत्ति है, षष्ठ अङ्ग का नाम नाहस्स धम्मकहा है, अष्टम अंग का नाम अन्तयडदसा है । अंगपण्णत्ति नामक ग्रन्थ में द्वितीय अंग का नाम सूदयड, पंचम अंग का नाम विवायपण्णत्त ( संस्कृतरूप 'विपाकप्रज्ञप्ति' दिया हुआ है ) एवं षष्ठ अंग का नाम नाहधम्मका है । दृष्टिवाद के सम्बन्ध में कहा गया है कि इसमें ३६३ दृष्टियों का निराकरण किया गया है । साथ ही क्रियावाद, अक्रियावाद, अज्ञानवाद एवं विनयवाद के अनुयायियों के मुख्य-मुख्य नाम भी दिये गये हैं । ये सब नाम प्राकृत में हैं । राजवार्तिक में भी इसी प्रकार के नाम बताये गये हैं । वहाँ ये सब संस्कृत में हैं । इन दोनों स्थानों के नामों में कुछ-कुछ अन्तर आ गया है । इस प्रकार दोनों परम्पराओं में अंगों के जो नाम बताये गये हैं उनमें कोई विशेष अन्तर दिखाई नहीं देता । सचेलक परम्परा के समवायांग, नन्दीसूत्र एवं पाक्षिकसूत्र में अंगों के जो नाम आये हैं उनका उल्लेख करने के बाद दोनों परम्पराओं के ग्रन्थों में प्रसिद्ध इन सब नामों में जो कुछ परिवर्तन हुआ है उसकी चर्चा की जाएगी । समवायांग आदि में ये नाम इस प्रकार हैं १. समवायांग २. नन्दी सूत्र ३. पाक्षिकसूत्र ( प्राकृत ) १. आयारे २. सूयगडे ३. ठाणे ४. समवाओ, समाए ५. विवाहपन्नत्ती विवाहे ६. णायाधम्म - कहाओ Jain Education International ( प्राकृत ) आयारो सूयगडो ठाण समवाओ, समाए विवाहपन्नत्ती विवाहे णायाधम्म कहाओ ( प्राकृत ) आयारो सूडो ठाणं समवाओ, समाए विनापन्नत्ती विवाहे णायाधम्म कहाओ For Private & Personal Use Only -: ४. तत्त्वार्थभाष्य. ( संस्कृत ) आचारः सूत्रकृतम् स्थानम् समवायः व्याख्याप्रज्ञप्तिः ज्ञातधर्मकथा. www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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