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________________ ५८ हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास (राजस्थानी प्रधान मरुगुर्जर भाषा, १२२ कड़ी) की रचना की। आदि- "वंदे पास जिणंद चंद तिलयो तिलोयना हो वरी, देविंदायन्नरिंद वंदीय पायो, हरा करो दुब्भरो। विख्यातों महि आस तेण तनयो वामासुतं विम्मले, माता श्री पद्मावती मम सदा कुर्वन्तु नो मंगलं। गाहा- नव मंगल नव रयणी नवि दल कमल विकासिया नयणी, गिरू यति हंसा गमणी, वंदे सरसत्ति शशि वयणी। इसमें विविध प्रकार के छंदों का मनोरम प्रयोग मिलता है, जैसे वस्तु अथवा वछूआ, अडल्ल, मोतीदाम, दूहा, त्राटकी, जाति, कवित्त, वृद्ध नाराच और केसरी आदि छंद। अंत में कलश है, यथा "त्रिमैनाथ अनाथ नाथ श्री नाथ नमो नमः जगविख्यात अविख्यात नाथ जगन्नाथ जयो मम। अधकरण अस्त सुरतर समस्त किन्नर आराधक, त्रिजगतनाथ श्री पार्श्वनाथ सुप्रसन्न मन साधक। जयति-जयति सत्त विजयत जयति दीपति सुगति सद्गति दीयति, कवि कान स्वेतांबर कहित कृत श्री फल विध अथ पत्तिसति।'६६ कांतिविजय आप देवविजय के प्रशिष्य और दर्शनविजय के शिष्य थे। रचना सुभद्रा चौ० अथवा संम्झाय (३७ कड़ी सं० १८३३ पोष पू, जामला) रचनाकाल- संवत् अठार तेत्रीसो सार, पोस मास पंचमी निरधार, जामला गामे जिनभुवन सुठाम, कयों चोमासो शुभ अभिराम। देवदर्शन गुरु सीस सवाय, कांति विजय हरषे गुण गाय।" अंतिम पंक्ति गाया गुण सुभद्रा तणा प्रह सम गणतां सुख बहघणा, प्रति के खंडित होने से प्रारंम्भिक पंक्तियाँ नही मिली। आपकी दूसरी रचना का नाम है “चार कषाय छंद (३२ कड़ी सं० १८३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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