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________________ ५७ कवियण - कस्तूरचंद बरद पुत्रों माघ, कालिदास आदि का सादर उल्लेख किया गया हैं। रचनाकाल से संबंधित पंक्तियाँ "संवत अठार पचीस आसो सुदि रे, अष्टमी रविवार रच्यो रे, स्तोक में देव विलास कीधो रे, किंचित गुणग्रहीने संस्तव्यो रे। अंत- कवियणे देवविलास कीधो मन हर्षित उल्लस्यो रे, कीधो देव विलास शुभ दिने रे, जयपताका विस्तारी रे। कलश के तीन छंदों में अंतिम यह है "मनरूप वाचक विजयचंद जी, पाठक नो पद भाग्यता, मनरूप पदकज मेरू गिरिवर, रायचंद, रवि उद्गता। सुज्ञानतायें विनयवंते, बुद्धि मुक्ति सुरगुरू, चंद्र सूर ध्रु तार तारक रहो अविचल जयकरू।"६४ यह रचना आचार्य बुद्धिसागर ने सं० १९८१ में छपाई है। कस्तूरचंद खरतरगच्छीय समयसुंदर की परम्परा में आप भक्तिविलास के प्रशिष्य थे। आपने षट्दर्शन समुच्चय बाला० की रचना सं० १८९४, बीकानेर में की। रचनाकाल से संबंधित पंक्तियाँ देखें "संवत् वेद निधान गज पृथ्वी को परिमाण, राध मास वदिदुतिय शनि, बीकानेर सुथान। पंडित भक्तिविलास के पौत्र शिष्य कस्तूर, समझ देखि टीका कठिन, कियौ प्रयास सबेर।" कोठारी श्रावक सुबुध, अगरचंद के हेतु, बालबोध रचना करी तुरत जाण सुख देता६५ स्पष्ट है कि यहाँ रचनाकाल में प्रयुक्त निधान' शब्द नव निधि के लिए है किन्तु 'राध मास' अस्पष्ट है। यह श्राद्धमास अर्थात् क्वार हो सकता है। यह रचना श्रावक अगरचंद के पठनार्थ लिखी गई थी। कान ये श्वेताबंर संप्रदाय के रचनाकार थे। इन्होंने ‘फलवर्धी पार्श्वनाथ नो छंद' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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