SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेखकीय मरु-गुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहत् इतिहास का चतुर्थ खण्ड (१९वीं० विक्रमीय) पाठकों के हाथ मे सौंप कर मैं उस बड़ी जिम्मेदारी से मुक्त हो रहा हूँ जो पार्श्वनाथ विद्यापीठ के निदेशक प्रो० सागरमल जैन ने मेरे जैसे अक्षम व्यक्ति के कन्धों पर डाली थी। मुझे प्रसन्नता है कि मैं उनके विश्वास की रक्षा कर सका। अब यह सहृदय पाठकों पर है कि वे इसका मूल्यांकन करें और जो कमियाँ हों उनको सुधारने का सुझाव व अवसर दें। इस ग्रंथ द्वारा यदि बृहत्तर हिन्दू समाज और जैन धर्म, संस्कृति, साहित्य और उनके धर्मावलंबियों की जीवन चर्या को समीप से परस्पर जानने में कुछ सहायता मिलती हो तथा हिन्दी भाषा, साहित्य तथा गुजराती, राजस्थानी भाषा और साहित्य को समीप लाने में कुछ योगदान हुआ हो तो उसे राष्ट्रीय भावनात्मक एकता की दृष्टि से एक उपलब्धि समझा जाना चाहिये। इस ग्रंथ के छापने का उपक्रम करके पार्श्वनाथ विद्यापीठ के प्रबन्ध मण्डल ने जिस सूझ-बूझ का परिचय दिया है वह सराहनीय है, मैं एतदर्थ प्रबन्ध मण्डल के प्रति आभार भी व्यक्त करता हूँ। इस ग्रंथ के प्रणयन में मेरा योगदान एक मधु-मक्षिका की तरह रहा हैं, मैंने मोहनलाल द० देसाई, अगरचंद नाहटा, कस्तूरचंद कासलीवाल, नाथूराम जैन, कामता प्रसाद जैन आदि अनेक विद्वानों की रचनाओं से सामग्री का संचयन कर उसे व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत करने का यथाशक्ति प्रयास किया है। मैं उन सभी विद्वानों के प्रति श्रद्वावनत् हूँ और अपनी हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। वृद्वावस्था और बीमारी के चलते मैं एक बार इस खण्ड को पूरा करने की तरफ से निराश हो गया था, किन्तु मेरे आत्मज डॉ असीम कुमार ने मुझे आश्वस्त किया और न केवल सहयोग दिया बल्कि सहलेखक का दायित्व निभाया। संस्थान के सभी विद्वानों और कर्मचारियों ने अपने ढंग से मेरी मदद की, इसलिए मैं पुस्तकालय, प्रकाशन और अन्य संबंधित विभागों के अधिकारियों; कर्मचारियों को साधुवाद देता हूँ। २०वीं शती (विक्रमीय) से हिन्दी, गुजराती, राजस्थानी भाषाओं के गद्य-पद्य की नाना विधाओं में प्रचुर जैन साहित्य लिखा जा रहा है जिसके साथ एक खण्ड में एक लेखक पूरा न्याय नही कर सकता। इसलिए इस संबंध में आगे के प्रकाशन की योजना पार्श्वनाथ विद्यापीठ प्रबन्ध मण्डल एवं निदेशक पर निर्भर है, किन्तु इस बृहद् इतिहास को अद्यतन बनाने मे यदि मैं किसी प्रकार यत्किचित सहयोग कर सकूँगा तो प्रसन्नता ही होगी। डा० शितिकंठ मिश्र कार्तिक पूर्णिमा पू० प्राचार्य, ३, महामनापुरी दयानन्द महाविद्यालय,वाराणसी बी०एच०यू० वाराणसी-५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy