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________________ प्रकाशकीय 'हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास' नामक पुस्तक के चतुर्थ खण्ड को पाठकों के समक्ष समर्पित करते हुए हमें अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। पार्श्वनाथ विद्यापीठ के निदेशक डॉ० सागरमल जी जैन ने हिन्दी जैन साहित्य के बृहद् इतिहास के निर्माण की योजना बनायी थी, जिसे मूर्त रूप प्रदान करने में डॉ० शितिकण्ठ मिश्र जी ने मुख्य भूमिका निभायी है, अतः हम डॉ० सागरमल जी जैन एवं डॉ० मिश्र जी के हृदय से आभारी हैं। हिन्दी जैन साहित्य इतिहास निर्माण की इस योजना के प्रथम चरण में, जो सन् १९८९ में प्रकाशित है, आदिकाल से १६वीं शताब्दी तक के इतिहास को समाहित किया गया है। इसी प्रकार द्वितीय एवं तृतीय चरण, जो क्रमशः सन् १९९४ एवं १९९७ में प्रकाशित हुआ है, के अन्तर्गत १७वीं एवं १८वीं शताब्दी में रचित साहित्य के इतिहास को प्रस्तुत किया गया है। निर्माण योजना का यह चतुर्थ चरण है, जिसमें १९वीं शताब्दी के हिन्दी साहित्य का ऐतिहासिक रूप समाहित है। इसका वास्तविक मूल्यांकन तो पाठकगण स्वयं करेंगे, इस सन्दर्भ में हमारा कुछ भी कहना उचित नहीं जान पड़ता । पुस्तक प्रकाशन में प्रूफ रीडिंग का पूर्ण दायित्व पार्श्वनाथ विद्यापीठ के शोध सहायक डॉ० असीमकुमार मिश्र एवं प्रेस सम्बन्धी दायित्व संस्थान के ही प्रवक्ता डॉ० विजय कुमार जैन ने वहन किया है, अतः वे धन्यवाद के पात्र हैं। उत्तम अक्षर संयोजन के लिए सन कम्प्यूटर साफ्टेक, नरिया, वाराणसी और सुन्दर मुद्रण के लिए हम वर्द्धमान मुद्रणालय के भी आभारी हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only भूपेन्द्रनाथ जैन मानद सचिव पार्श्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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