________________
४४
हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास विजयशेठ विजयावली, पाया शिवसुख सार।
इसमें ऊपर लिखी गुरु परम्परा का उल्लेख करते हुए गुरुवंदना की गई है। रचनाकाल- संवत् अठार से इकबीसे जेठ शुकल शुभ मासै रे;
द्वादसि तिथि देखत मन हीसै, सोमवार शुभ दीसै रे। अंत- "दंपति इण विधि चरित्र पाली, दूषण सगला टाली रे,
चारे धातीयां कर्म प्रजाली, निज आतम अजुआली रे। इग्यारसी ढाल भविकजन भणिज्यो निज पातकजन लुणज्यो रे;
गाँव कमालपुरे में थुणिज्यो, तज परमाद गुणिज्यो रे।४२ उदयचंद
आपकी एक रचना 'ब्रह्मविनोद' का उल्लेख मिलता है। यह सं० १८८४ से पूर्व जोधपुर में रची गई। कोई उद्धरण नहीं प्राप्त हुआ। प्रति का लेखन सं० १८८४ कार्तिक शुक्ल १० जोधपुर में हुआ। इस प्रति के लेखक साधु नयविजय ने अपने शिष्य चेतविजय के पठनार्थ इसे लिखा था ३ उदयचंद भण्डारी
आप जोधपुर के राजा मानसिंह के मंत्री उत्तमचंद भंडारी के भाई थे। अपने भाई के समान ये भी राज्याधिकारी थे और काव्य साहित्य, छंद, अलंकार और दर्शन आदि विषयों के अच्छे जानकार थे। इनका रचनाकाल १८६४ से सं० १९०० तक है। आपके कृतित्व पर डॉ० कृष्ण मुहणोत ने शोध प्रबंध लिखा है। आपके रचनाओं की सूची आगे दी जा रही है- छंद प्रबंध, छंद विभूषण, दूषण दर्पण, रसनिवास, शब्दार्थ चंद्रिका, ज्ञान प्रदीपिका, जलंधरनाथ भक्ति प्रबोध, शनिश्चर की कथा, अनुपूर्वी प्रस्तार बंध भाषा, ज्ञान सत्तावनी, ब्रह्मविनोद, ब्रह्मविलास, विज्ञविनोद, विज्ञविलास, वीतराग वंदना, करुणा बत्तीसी, साधुवंदना, वीनती, प्रश्नोत्तर वार्ता, विवेक पच्चीसी, विचार चन्द्रोदय, आत्मरत्नमाला, ज्ञान प्रभाकर, आत्मज्ञान पंचासिका, विचारसार, षट्मतसार सिद्धांत, आत्मप्रबोध भाषा, आत्मसार मनोपदेश भाषा, वृहच्चाणक्य भाषा, लघुचाणक्य भाषा, सभासार सिखनख, कोकपद्य, स्वरोदय, श्रृंगार कवित्त और सौभाग्य लक्ष्मी स्तोत्र। ये समस्त रचनायें महोपध्याय श्री विनयसागर के संग्रह में सुरक्षित हैं।४
भण्डारी से पूर्व जिस 'उदयचंद' नामक रचनाकार की रचना 'ब्रह्मविनोद' का उल्लेख किया गया है, वे उदयचंद भण्डारी ही होंगे। ब्रह्मविनोद भण्डारी जी की रचना है। खेद है कि इनकी किसी रचना का विवरण-उद्धरण न तो देसाई ने और न नाहटा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org