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________________ ३३ अमीविजय - आणंदवल्लम सरसति मात मया करी आपो अविचल वांणि, ढुंढ पवाडो गावतां लही कोडी कल्याण। अंत- अहेवो प्रभाव ज देखी नीकली ढुंढीयारी सेखी, कहे अविचल मन रंग तुमे म करजो ढुंढ प्रसंग। अंत- अहेवो प्रभाव भाव ज देखी नीकली ढुंढ़ीयारी सेखी, कहे अविचल मन रंग तुमे म करजो दुढं प्रसंग। मम करो दुढे प्रसंग मानव देव नंद्या मत करो, इह भव परभव उभय भव जो सकल सुखवांछा करो। ओ ढुढं जास्ये सुजस थास्ये गच्छ इज्जत खास जी, श्री पार्श्वनाथ प्रसाद अविचल रच्यो रास उल्लास जी।"१९ कलश आणंद रचना नेमि जी का चरित्र सं. १८०४ फाल्गुन शुक्ल ५, रचनांकाल संबंधी पक्तियाँ “संवत् १८ चिडोत्तर- फागुण मास मझारी, सद पंचती सनीचर रे कीधो चरित उदारों। रचना मेमनाथ के चरित्र पर आधारित है, संबंधित दो पंक्तियाँ देखे: नमे तसतात सघर मध्ये रे रहया ज रूड भावो, चरित्र पालये सात सारे सहस वरस ना आवो।"२० आणंदवल्लम खरतरगच्छीय रामचन्द्र के आप शिष्य थे। इन्होंने दण्डक संग्रहणी बाला० सं.१८८०, अजीमगंज में और' विशेष शतक भाषा गद्य सं० १८८२, ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी, बालूचर में रचा। मूल ग्रंथ समयसुंदर की रचना है। आपने सं० १८७३ से १८८२ के बीच कई गद्य रचनायें की जिनमें चौमासा व्याख्यान, अठाई व्याख्यान, ज्ञानपंचमी मौन ग्यारस होली व्याख्यान, श्राद्धदिन कृत्य बालावबोध आदि उल्लेखनीय हैं। इससे प्रकट होता है कि आप अच्छे गद्य लेखक थे। आपके गद्य रचना शैली का प्रमाण देने के लिए कोई उपयोगी उदाहरण नहीं उपलब्ध हो सका परन्तु रचनाओं की प्रभूत संख्या से उनके अच्छे गद्यकार होने का प्रमाण मिल जाता है।२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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