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________________ हि०जै०सा० की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि भी. पड़ा। इस शती में गुजरात के कठियावाड़ में स्वामी सहजानंद ने १८३७ में स्वामी नारायण संप्रदाय चलाया। ये लोग भी मूर्तिपूजा की अपेक्षा मानसीपूजा को श्रेष्ठ मानते है। इससे कुछ ही समय पहले १८१८ में भीखम जी ने तेरापंथ चलाया जो राजस्थानी थे। इन्होंने १२ अन्य साधुओं के साथ बगड़ी मारवाड़ में १८१८ में तेरह (तेरा पंथ) चलाया। ये हिंसा त्याग को धर्म मानते थे किन्तु असंयमी की प्राणरक्षा अनुचित मानते थे। आपने साहित्य की रचना की है। इनका जन्म सं० १७८७ में राजस्थान के कंटालिया ग्राम में हुआ। आपने मरुगुर्जर (हिन्दी) में भी साहित्य रचना की। इस पंथ के यशस्वी आचार्य तुलसी के नाम से सभी परिचित हैं। इनके अणुव्रत के अनुयायियों की संख्या दिनों दिन बढ़ती रही है। सारांश यह है जैन धर्म के दो प्रमुख प्रदेशो मरु और गुर्जर में क्रांति की लहर गतिशील थी । दलबन्दियों से ऊपर उठकर जैन समाज के संगठन के लिए इस शताब्दी में दिगम्बर श्वेताम्बर और स्थानकवासी - तीनों प्रमुख अंगों ने प्रयत्न किया। १८९४ में दिगम्बर कान्फ्रेन्स, १९०२ में मूर्ति पूजक श्वेताम्बर (जैन कान्फ्रेन्स की स्थापना हुई। स्थानकवासी समाज को संगठित करने के लिए अखिल भारतवर्षीय जैन कानफ्रेन्स की स्थापना की गई जिसका प्रथम अधिवेशन फरवरी १९०६ में मोरवी में हुआ। २५ स्थानकवासी धार्मिक साहित्य के रचनाकारों में अग्रगण्य नाम अमोलक ऋषि का है जिन्होंने ३२ आगमों को हिन्दी भाषा में अनूदित किया। जैन तत्त्व प्रकाश उनकी श्रेष्ठ कृति है। ग्रन्थ लेखकों में आत्माराम म०, घासीलाल जी म०, हस्तीमल जी म० आदि ऋषि आगम साहित्य को जनसुलभ बनाने के कार्य में जुटे हैं। आगमेतर साहित्य की रचना में जवाहिर लाल जी म० चौथमल जी म० आदि के नाम उल्लेखनीय है जो संप्रति रचनाशील हैं। इस कार्य में कई संस्थायें प्रशंसनीय कार्य कर रही है और साहित्य के प्रकाशन द्वारा महत्त्वपूर्ण योगदान कर रही हैं, उनमें जैन सिद्धान्त सभा, बम्बई, गुजराती साहित्य, जैन गुरुकुल व्यावर, स्थानकवासी जैन साहित्य परिषद अहमदाबाद तथा पार्श्वनाथ विद्याश्रम वाराणसी के नाम उल्लेख्य हैं। जैन साधुओं, श्रावकों और जैन समाज का शासन सत्ता से सदैव अच्छा संबंध रहा है। १८वीं शती के अंतिम दशक और १९वीं शती के प्रारंभिक चरण में लव जी ऋषि को खंभात के नवाब का क्रोध भाजन बनना पड़ा था; और उसने लवजी को कैद में डाल दिया। नवाब का कान लवजी के नाना वीर जी वोरा ने ही भरा था और लवजी को धर्म-विरोधी और शासन विरोधी कहा था परन्तु उनकी धर्मचर्या और साधुता से जेल के कर्मचारी और जेलर प्रभावित हुए। उनलोगों ने बेगम से इनके सदाचार की प्रशंसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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