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________________ हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास साहित्य में काव्य की स्थिति सोचनीय थी । कविता का दम अलंकार, रीति और रूढ़ियों के मलबे के नीचे दब कर घुट रहा था। उसमें कामुकता और हताशा के सिवा अन्य किसी विषय की व्यंजना नहीं के बराबर हो गई थी। फारसी - उर्दू में भी आशिकी रचनाओं की संख्या ही अधिक थी। उर्दू के कुछ शायरों ने नाम कमाया जैसे मीर, सौदा, नजीर, ग़ालिब आदि। इस काल में दक्षिण की मलयाली भाषा में पुनर्जीवन दिखाई पड़ा। केरल में कथाकली नृत्य नाटक का कुछ विकास हुआ। वास्तु कला और मित्तिचित्रों का उत्तम उदाहरण ‘पद्मनाभन प्रासाद' इस काल का अच्छा नमूना है। तमिल में सित्तर काव्य का प्रवर्त्तक तायुमानवर ( १७०६-४४) इसी समय हुआ । इसने मंदिर व्यवस्था और जाति प्रथा की कुरीतियों का विरोध किया। असम में अहोम राजाओं के संरक्षण में कुछ साहित्य रचना हुई । गुजरात में दयाराम के गीत और पंजाबी में वारिश शाह की हीर राझा इस काल की उल्लेखनीय रचनायें हैं । सिन्धी साहित्य का उत्कर्ष हुआ । शाह अब्दुल लतीफ, सचल और सामी आदि कई प्रसिद्ध सिन्धी साहित्यकार इसी शताब्दी में हुए । २२ गणित और नक्षत्र विद्या में प्राचीन उपलब्धियों की तुलना में यह शताब्दी इस क्षेत्र में कुछ नहीं दे सकी। सामंतो और साधारण जनों में अंधविश्वास और रूढ़िवादिता घर कर गई थी इसलिए ज्ञान-विज्ञान के नये झरोखे नहीं खुले । पश्चिम में जिस वैज्ञानिक बुद्धिवादी संस्कृति और साहित्य तथा ज्ञान-विज्ञान का प्रचार-प्रसार बढ़ रहा था और इसके कारण उनकी जो राजनीतिक और आर्थिक उन्नति हो रही थी उसकी ओर से भारतीय इस कालावधि में प्रायः अनभिज्ञ रहे। यह बौद्धिक और सांस्कृतिक पिछड़ापन हमारी गुलामी का एक प्रमुख कारण था । सत्ता और संपदा के लिए संघर्ष, आर्थिक दीवालियापन, सामाजिक पिछड़ापन और सांस्कृतिक जड़ता ने भारतीय जनता के चरित्र पर बुरा प्रभाव डाला। सामंत और सरदार तथा राजे और नवाबों का चरित्र तो साधारण जनता से भी गया गुजरा था। वे भ्रष्ट, पतित, कृतघ्न, ऐय्यास और चरित्रहीन थे। साधारण जनता उस आपद्काल में भी चरित्रवान् थी । उसके चरित्रबल की प्रशंसा जान मैल्काम, क्रानफार्ड आदि कई यूरोपीय अधिकारियों ने की है। वे परोपकारी, निश्छल, अतिथि का स्वागत करने वाले और नैतिक दृष्टि से चरित्रवान् थे, इस शती में इस समाज की महत्त्वपूर्ण विशेषता हिन्दु - मुसलमानों की आपसी समझदारी और विरादरी की भावना थी। दोनों संप्रदाय मेलजोल से रहते थे, एक दूसरे के दुःख दर्द में हिस्सा बटाते थे। सामंतो नवाबों की लड़ाई भी स्वार्थ पर आधारित थी न कि धर्म के नाम पर। राजनीति धर्म निरपेक्ष थी। आपसी भाईचारे का संबंध गॉवों और नगरों में बरकरार था। एक साझी संस्कृति का उत्थान हुआ था। भाषा भेद भी नहीं था । उर्दू भाषा के विकास में मुसलमानों के साथ हिन्दू लेखकों ने भी बड़ा योगदान किया । हिन्दुओं में भक्ति आन्दोलन और मुसलमानों में सूफीमत प्रचार के प्रभाव से यह भाईचारा और साझी संस्कृति का विकास संभव हुआ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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