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________________ २८० हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास उपसंहार हिन्दी जैन साहित्य का महत्त्व एवं मूल्याङ्कन ___ मरुगुर्जर (पुरानी हिन्दी भाषा में जैन काव्य साहित्य का विशाल एवं संपन्न भण्डार है जो विविध काव्यरुपों, देशियों और ढालों में प्रणीत है। इसके संपन्नता और विशालता की प्रशंसा महामना पं० मदन मोहन मालवीय, विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर और डॉ० सुनीति कुमार चाटुा जैसे मनीषियों ने मुक्त कंठ से की है। ग्रियर्सन ने इसकी सराहना करते हुए कहा था। इसमें ऐतिहासिक महत्त्व का विपुल साहित्य भरा पड़ा है।'३५ १२वीं शती (विक्रमीय) में इस देश में शैवमत का व्यापक प्रचार था; पूर्वी भारत में तंत्र-मंत्र प्रधान वज्रयानी संप्रदाय का और पश्चिमी भारत के राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक जैसे प्रदेशों में संयम प्रधान जैन धर्म का प्रचुर प्रभाव था। इस धार्मिक विविधता में अद्भुत एकता थी। धर्म के नाम पर कोई उपद्रव नहीं होता था। सर्वधर्म समभाव यहाँ के संस्कृति की प्राचीन विशेषता थी, किन्तु इसी समय मसलमानों ने धर्म के नाम पर अत्याचार और क्रूर व्यवहार प्रारंभ कर दिया। उन्होंने आक्रमण और विद्वेष, लूटपाट, आगजनी, तोड़फोड़ द्वारा मध्यदेश के साहित्य, कला, संस्कृति का विनाश कर दिया जो साहित्य या सांस्कृतिक अवशेष उस काल का उपलब्ध होता है वह प्राय: राजस्थान और गुजरात आदि पश्चिमी प्रदेशों का है जो तब तक मुसलमानी आक्रमण से या तो बचे थे या सफलतापूर्वक आक्रमणों का सामना करके अपने संस्कृति को बचाने में सक्षम रहे। ऐसी स्थिति में राष्ट्रभाषा हिन्दी का ऐतिहासिक विकास क्रम एवं उसके साहित्य का प्रामाणिक इतिहास जानने का अत्यन्त विश्वसनीय और सुलभ साधन पुरानी हिन्दी (मरुगुर्जर) का जैन साहित्य है जो विविध ज्ञान भंडारों में श्रद्धापूर्वक सुरक्षित रखा गया है। पहले कहा जा चुका है कि किसी भाषा और उसके साहित्य का विकास राज्याश्रय, धर्माश्रय या जनाश्रय में होता है और सुरक्षित रहता है। हिन्दी को केवल जनाश्रय पर निर्भर रहना पड़ा किन्तु मरुगुर्जर (पुरानी हिन्दी) की कहानी उससे भिन्न रही। इसे गुजरात, मालवा और राजस्थान में राष्ट्रकूट, परमार और सोलंकी शासकों का संरक्षण प्राप्त हुआ। मान्यखेट के राष्ट्रकूट शासकों के मंत्री प्राय: जैन हुआ करते थे। वे लोग जैन मुनियों और कवियों का सम्मान करते थे। बरार में उन दिनों जैन वैश्यों का प्राधान्य था, उन्होंने मरुगुर्जर जैन साहित्य को पर्याप्त प्रोत्साहन-संरक्षण प्रदान किया। राष्ट्रकूटों के पतन के पश्चात् सोलंकी शासकों के समय जैनधर्म को राजधर्म की मान्यता मिल गई थी। इसलिए राष्ट्रकूटों की छत्रछाया में जिस तरह स्वयंभू और पुष्पदंत जैसे जैन महाकवियों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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