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गुर्वावली - कल्पशूत्र बाला०
२७७ चववा वेला न जाणइ चव्या पीनै जाणै ज चव्या। जिणै रात्रिइ श्रमण भगवंत श्री महावीर देवानंद नामइ ब्राह्मणी जलधर जेहनो गोत्र तेहनी कखै गर्भ पणइ अवतयों तिणै रात्रिमइ विषै देवानंदा ब्राह्मणी
सिज्यानै विषै अतिहि सूता नहीं अति जागता नहीं।३० कल्पसूत्र टीकाअंत- श्री नेमनाथ, वर्षाकाल तणे
चोथ मास, सातवें पखवारे, काती महीने, अंधार पख; बारस तणें दीहाड़े, अपराजित विमान, तिहां वतीस सागर नो आउखो भोगवी चवता हुआ, इही जंबूदीपे, बोही भरत क्षेत्रे सारीपुर नगरे समुद्रविजे राजा भाा सेवादेवी, आधी राते तणे समै विसाखा नक्षत्र चंद्रमा तणे संजोगे गर्भपणे
अवतर्या। चवदे सूपना दीठा।३१ 'सम्यकत्त्व कौमुदी कथानक' बाला०आदि- श्री वर्धमान चतुविशिंति तीर्थंकर ने नमस्कार करीने,
किंसा छे वर्धमान, जगत कहीयै तीन त्रिभुवन का स्वामी छइ, हु कौमुदी सम्यकत कथा कहुं छु किसवास्ते, जे सम्यकत घारी श्रावक छे तिउकु दृष्टकरण के वास्ते, इस जंबुदी. भरत क्षेत्र विषइ मगध देसइ राजगृही नगरी छो, तिस नगरीये निरंतर महामहोछव होइ।
प्रभूत घणा वर प्रधान भगवंत का देहरा हुइ।३२ ।
आगे कुछ अज्ञात लेखकों के द्वारा रचित बाला व बोध और टव्वों की सूची मात्र प्रस्तुत की जा रही है ताकि यह अनुमान किया जा सके कि मरुगुर्जर में पर्याप्त गद्य साहित्य अन्य विभाषाओं की तरह १९वीं (वि०) शती में जैन विद्वानों द्वारा लिखा गया पर वे इतने निस्पृह साधु लेखक थे जिन्होंने न रचनाओं में अपना नाम-पता दिया, न लेखन द्वारा यश कामना की, अस्तु; सूची- नवतत्व बाला०, संबोध सत्तरी बाला०, अणुत्तरो बेवाई सूत्र बाला०, दीपमालिका कल्प बाला०, षडशीति कर्म ग्रंथ बाला०, मुहूर्त मुक्तावली बाला०, कल्पसूत्र बाला०, रत्न संचय बाला०, दशवैकालिक सूत्र बाला०,जंबूचरित्र बाला०, जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति बाला०, दंडक पर बाला०, जंबूद्वीप संग्रहणी बाला०, औपपातिक सूत्र बाला०, चाणक्य नीति बाला०, पुराण श्लोक संग्रह बाला०,
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