SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७४ हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गद्य भाषा में होते थे। इस प्रकार वे भी भारतीय भाषाओं के गद्य विकास में परोक्ष रूप से सहायक हुए। उनके धर्म प्रचार का विरोध करने के लिए राजस्थान, गुजरात, बंगाल, पश्चिमोत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र आदि प्रदेशों में कई संस्थायें स्थापित हुई। पत्र पत्रिकायें निकलीं; पुस्तकें, प्रकीर्णक छापें गये जिनमें भारतीय धर्म-संस्कृति का समर्थन, प्रचार-प्रसार और मंडन तथा ईसाइयों के तकों का खण्डन किया गया। इस प्रकार खण्डन-मंडन से प्रादेशिक भाषाओं के गद्य का पुष्ट विकास तेजी से हुआ। धर्म दर्शन के अलावा राजनीति, अर्थनीति, विज्ञान, तकनीकी और प्राविधिक शिक्षा आदि विविध विषयों से संबंधित अभिव्यक्ति पद्य में संभव न थी इसलिए गद्य का विकास आवश्यक हो गया था। इस संक्रमण काल में अंग्रेजों, मुसलमानों और हिन्दुओं के पारस्परिक संवाद का माध्यम गद्य ही था जिसके माध्यम से पारस्परिक कारोबार, विचारों का आदान प्रदान और भाव विनिमय संभव था। इसलिए यह शताब्दी भारतीय आधुनिक भाषाओं के इतिहास में गद्य के विकास के लिए स्मरणीय है। आगे जो मरुगुर्जर गद्य के ज्ञात-अज्ञात लेखकों की रचनाओं का संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है उससे स्पष्ट होगा कि पुरानी हिन्दी (मरुगुर्जर) गद्य का भी इस शती में अच्छा विकास हुआ। भाषा प्रसाद गुण संपन्न हुई, सुबोध हुई और भदेसपन, गवांरुपन तथा अस्पस्टता आदि दुर्गुणों से मुक्त होकर ऋजु रुप में लिखी जाने लगी। लेखकों का विवरण देते समय पद्य रचनाओं के साथ उनकी प्रमुख गद्य रचनाओं का परिचय या नामोल्लेख कर दिया गया है, फिर भी बहुत सी ज्ञात-अज्ञात लेखकों की गद्य रचनायें छूट गई थी। उनका संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करने का प्रयास आगे किया जा रहा है। गद्य रचनायें जंबू अञ्झायण बाला व बोध- बालावबोध गद्य की वह टीका शैली है जो अत्यन्त सरल होने के कारण बालकों के लिए भी सुबोध होती है। प्रस्तुत बाला व बोध की मूल रचना पद्मसुंदर द्वारा प्राकृत में की गई थी। इसके प्रारंभ और अंत की पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं। आदि- ते काल ने विषे-ते समय ने विषे राजगृही नगर ने विषे होत्था। इस एक पंक्ति के देखने से स्पष्ट होता है कि पूरी पंक्ति में केवल 'काल' का अर्थ 'समय' बताया गया है और कोई अंतर नहीं है। इसकी अंतिम पंक्ति देखिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy