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________________ २७२ आदि हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ओ बालक सुभ लच्छन पूरे, देषत जाइ दोष दुष दूरे, आगम अगम आदि सुभ साखी, या सामुद्रिक ग्रंथ में भाखी। आगम लच्छन अंग जनावे, सवे अवधि पूरे फल पावे, ताका अब कछु कहूं विचार, समझत कहत सुनत सुखकार। जो जाने सो जांन, दाता होहि अजान पुनि, जानपनो अरु ध्यान, अजेराज दुविधि निपुन। जो कोऊ या ग्रंथ को चतुर पढे चित लाय, लछन तिय पुरुष के, समझे सबि सभायाः २५ इति सामुद्रिक भाषा ग्रंथ पुरुष स्त्री वर्णन संपूरण। अंत भोजे इनकी रचना का नाम चाबखा है यह पद संग्रह है। इसमें कुल १६ पद संग्रहीत हैं। ये पद प्रायः ३,४ से लेकर ५,७ कड़ी तक के हैं। इनमें से कछ भक्ति, प्रपत्ति पर और कुछ वैराग्य और संसार की क्षणभंगुरता पर आधारित मार्मिक पद है। कुछ पदों की प्रथम पंक्तियाँ आगे प्रस्तुत हैं प्राणिया भजि लनि करतार, आ सपनु छे संसार। अथवा-गुरव्वा जनम जियो छे तारो, बांधी कर्म तणो भारो। अथवा-पटल परषरो थासे रे, बाजी हाथ थि जासे। अंतिम पद की प्रथम पंक्ति निम्नाङ्कित है वाणिया जोई करो बेपार, आगल छे पंडाद्वार। इत्यादि यह रचना 'प्राचीन काव्य माला ग्रंथ ५ और भोजा भक्त नो काव्य प्रसाद' (सं० मन सुखलाल सांवलिया) तथा अन्यत्र से भी प्रकाशित एक लोकप्रिय काव्य कृति है। यह सं० १९०० अर्थात् हमारे लेखन की अंतिम अवधि की कृति है इसलिए उस समय तक की काव्य प्रवृत्ति एवं काव्य भाषा आदि का स्वरुप समझने के लिए महत्वपूर्ण है। अत: इसका उल्लेख सोदाहरण करना आवश्यक प्रतीत हुआ। इस प्रकरण के साथ अज्ञात पद्य लेखकों और जैनेतर लेखकों की कृतियों का विवरण समाप्त किया जा रहा है। आगे कविपय ज्ञात अज्ञात गद्य लेखकों का विवरण एवं उद्धरण देकर यह संकेत करने का प्रयत्न किया जायेगा कि उन्नीसवी शती का अंत होते-होते मरुगुर्जर (पुरानी हिन्दी) का युग समाप्त हो गया और आधुनिक हिन्दी (खड़ी बोली), राजस्थानी एवं गुजराती का गद्य-पद्यात्मक-साहित्य स्वतंत्र रूप से विकसित हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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