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________________ २७० हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रयने ऊगो रवि छोइयो, अंवर थयो रातो, जमना जी ने कांठड़े रास करीनो मातो। कृष्णा जी केरे कामनी राधा रमति राखो, जे रे जोइ ओ ते मागजो, भाम थी मन भाखो। गाई सीष ने सांभलो, राधा हरि नो रास, विप्र सुदामा वर्णवे, तिने वइकुंठे वास।१९ मिश्र बन्धु विनोद में 'सुदामा जी की वारखड़ी' का रचनाकाल सं० १९१७ से पूर्व बताया गया है।२° पता नहीं बारहखड़ी के रचनाकार सुदामा हैं अथवा किसी अज्ञात कवि ने सुदामा पर यह बारहखड़ी लिखी है। इसका प्रारंभ इस प्रकार हुआ है- “अथ श्री सुदामा जी की वाल्यषडि लिख्यते"। इसका आदि देखिये क का कलिजुग नाम अधारा, प्रभु समरो भव उतरो पारा। सांध्य संगत्य करी हरिरस पीजे, जीवन जनम सुफल करि लीजे। अंत- स सा सद्गुरु के चरना, रसनायक कहां लगि बरना। श शा सोच विचार मट जबहिसे दीपक ज्ञान दियो जबहिसे। नासो तिमर तब भयो प्रकासा, मानो रवि पूरण प्रभासा।२१ कृष्णदास- रचना 'कृष्ण रुक्मिणी विवाहुलो अथवा रुक्मिणी विवाह (सं० १८३० से पूर्व) आदि- विद्रभ देस कुंदणपुर नगरी भीमष नृप तहां नवनिधि सगरी, पंचपुत्र जाकइ कन्या रुषमणी, तीन लोक तरण सिरि हरणी। रुक्मिणी की सुंदरता का वर्णन करता हुआ कवि लिखता है मिरगराज कटि तटि मृगज लोचन, मिरगअंग बदन सुदे सही, . कहत कृस्नादास गिरधर उपज्य विद्रभ देसही। अंत- रुषमणि जामउंती सत्यभामा सदाभद्रा आणी, लक्षमनि कलही नितविदा, ओ आंठउ पटराणी रुकमणि व्याहु कथो कृष्णइजन, सीष सुणइ अर गावइ; अर्थ कामना मुगतिफल, च्यारि पदारथ पावइ। भगति हेति अउतार विमल रस, भूतल लीलाधारी; गिरवरधर राधा वालंभ परिजन जाडो बलिहारी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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