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________________ अज्ञात लेखक कृत २६७ अज्ञात कवि कृत 'विसह थी माता जी नो (अथवा भवानी नो) छंद (६५ कड़ी); रुक्मिणी हरण २१८ कड़ी; नाग दमण ११८ कड़ी और नरसीजी रा माहेरा' आदि अनेक रचनायें इस शती में रचित उपलब्ध हैं। इनमें से कुछ का रचनाकाल नहीं है किन्तु देसाई महोदय ने इन्हें १९वीं (वि० ) की रचनाओं में स्थान कुछ सोच समझ कर दिया होगा । ११ इनमें से कुछ की दो चार पंक्तियाँ नमूने के लिए उद्धृत कर रहा हूँ रुक्मिणी हरण अंत उरवसी मेनका रंभा जसी अप्सरा, मोहणी रोहणी रंभरा मूझरा । सुह कहैक नारद मिलै सा सदा, नाद अहिला पहिला दसुं नार रा आवते थै हरौ रस वरण-वरण, मांडीयो द्वारामती मह महण, करण लीधो जिही तिमो वसु हठ करी; साइंपै सखीयो त्याग व्रज सुंदरी । १२ 'नागदमण' की प्रारंभिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं वरतो सारद वीनवुं, सारद ! करि सुपसाय; पवाडो पनंगा सरस, यदुपति कीधो जाय। से उल्लेखनीय है कि ये रचनायें जैसे रुक्मिणी हरण, नागदमन आदि कृष्ण लीला पर आधारित वैष्णव साहित्य से संबंधित हैं। चूंकि ये रचनायें जैन भंडारों से प्राप्त है और लेखक अज्ञात है तथा भाषा मरुगुर्जर तथा शैली जैन साहित्य जैसी है इसलिए इनमें कुछ रचनाओं का नमूने के रुप में उल्लेख कर दिया गया है। कुछ इसी प्रकार की गद्य रचनायें भी अज्ञात लेखकों की प्राप्त हुई है। उनका विवरण आगे अलग से देने से पूर्व एक कोकशास्त्र (२५५कड़ी) की अंतिम पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं- जिसमें रति या संभोग के ८४ आसनों का उल्लेख है । यथा इम अनेक कामेश्वर तणां, आसन बोलूं थोड़ा-घणां । कामकला प्रीछी जो भोग, जिम स्त्री सूषपामे संभोग। जीवें नर स्त्री होय जोवना, मानमत्ता सारंग लोचना । चौरासी आसन परमांया, कोकदेव कहीं सुण राजान । १३‍ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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