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________________ २६५ नवपद पूजा - शालिभद्र संझास महाविदेह मां सीझस्येरे, लखमी लीला विलास रे।'४ रुपसेन की कथा (सं० १८०८) यह भी अज्ञात कवि कृत है। इसके आदि का दोहा प्रस्तुत है गवरीपूत्र समरूं गणनाह, वीरकथा मूझकरो पसाह। नवतेरी नगरी नू रूप, राजा राज करे गणभूप। भणसइ साठ अंतेवरी नार, करे राज रुडे वीस्तार। पाषाणमइ गढ़ पोल प्रकार, जन्यमापूत्रे बेज रुयडे सार। रुपसेन नइ रुपकुमार, राजा नइ मनि हर्ष अपार। आगइ लाखी सीखामण हीई, बड़े वीसामोता नवी दीये। बइणीपर पोतो ते राये, तब वलीआ नीसांणे धाये, कब्यता कहै सोग इम टल्या, रुपसेन भावी भानइ मल्या।' यह अज्ञात कवि जैनेतर प्रतीत होता है क्योंकि प्रारंभ में गणेश वंदना की गई है। संभतव: यह चारण परंपरा का कोई राजस्थानी कवि होगा क्योंकि इसकी भाषा पर डिंगल का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है। यह जैन परंपरा का लेखक भले न हो पर रुपसेन की कथा जैन परंपरा की प्रसिद्ध कथा है- इसलिए जैन साहित्य में इसे स्थान देना उचित है। अज्ञात लेखक कृत 'शालहोत्र अथवा अश्व चिकित्सा'- (हिन्दी) १८ अध्यायों में सं० १८३२ से पूर्व लिखित शालहोत्र ग्रंथ है। इससे ज्ञात होता है कि जैन साहित्य में केवल धर्मदर्शन ही नहीं बल्कि उपयोगी अन्य विषयों पर भी रचनायें हुई हैं। इसके कर्ता का नाम नकुल आया है। हो सकता है कि ये पाण्डवों के पाँच भाइयों में नकुल हों। उन्हें भी अश्व विद्या का ज्ञाता समझा जाता है।६ अज्ञात लेखक की रचना 'भोगल (भूगोल) पुराण' सं० १८४० से पूर्व लिखित एक गद्य कृति है और भूगोल शास्त्र पर आधारित है इसमें जैन मतानुसार सृष्टि की उत्पत्ति आदि विविध विषयों पर रोचक जानकारी हैं। यथा ॐ स्वामी भवण मंडाया, भौम मंडल का कयौं प्रमाण; उत्पत्ति शिष्ट का कहौं बषांणा केती धरती केता आकास, केता मेरुमंडल कैलास"........इत्यादि। इन अज्ञात कवियों ने नाना विषयों पर रचनाये की हैं जैसे सामुद्रिक सं० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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