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________________ २३८ रचनाकाल हरजसराय ये स्थानकवासी कवि थे। ये ओसवाल वैश्य थे। इनका निवास स्थान कुसुमपुर था। इन्होंने साधु गुण माला ( हिन्दी पद्य, १२५ कड़ी सं० १८६४, चैत्र शुक्ल ५) और देवाधिदेव रचना (हिन्दी पद्य, सं० १८७० चैत्र कृष्ण ) तथा देव रचना नामक ग्रंथ लिखे । ४२७ इनकी रचना 'साधु गुणमाला' से कुछ उद्धरण आगे दिये जा रहे हैं आदि अंत हरिचंद हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ज्येष्ठ शुक्ल दिवस, पूरन पढ़ौ निसंक। ४२६ श्री त्रैलोकाधीश को, बंदो ध्यावो ध्यान, या सेवा साता सुधी, पावो नीको ज्ञान । अलख आदि इस ईश को, उत्तम ऊचों ओक, असो ओडक ओरनह, अंत न आजग टेक। अठ दस वरषै चौसठे चैत मासे, सस मृग सित पक्षे पंचमी पापनासे; रच मुनि गुणमाला मोद पाया कि सूरे, हरजस गुण गाया नाथ जी आस पूरे । सकल जगत पर अचल अमल वर, अगम अलख पद अटल अकथ जस। घर जल दहन पवनवनत समय, सकल अटक तज परम सदन खस । सरप अमर नर करण हरष जस, वचन परम रस भवजन दस-दस । जगतर वरहर परम अनघ भव, भवजल तरुवर जसकर हरजस । ४२८ Jain Education International १८ वीं (वि०) शती के अंतिम चरण में पुरानी हिन्दी नये रूप में ढल रही थी, उसमें से अपभ्रंश के शब्द और मुहावरे हटाये जा रहे थे। कवि हरिचंद ने अपभ्रंशहिन्दी मिश्रित भाषा के साथ ही नये रूप में ढली हिन्दी में रचनायें करने में सक्षम थे । इनकी दो रचनाओं में इन शैलियों का प्रयोग दृष्टव्य है। प्रथम रचना पंच कल्याण और दूसरी 'पंचकल्याण महोत्सव' से उद्धरण उदाहरणार्थ आगे दिया जा रहा हैं (१) शाक्क चक्क मणि मुकट वसु, चुंबित चरण जिनेस, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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