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________________ सेवाराम पाटनी - सौजन्यसुंदर इसके हिन्दी गद्य भाषा का नमूना देखें “समस्त कार्य करि जगत गुरु नै ले करि इन्द्र बड़ी विभूति सूं पूर्ववत पुरनै ले आवता हुआ। तहां राज आंगण कै विषै बड़ा सिंहासन पाई हर्ष करि सर्वांग भूषित इन्द्र बैठ तो हुई । " ग्रंथ की प्रशस्ति में लिखा है कि इनके पिता पाटनी गोत्रीय मायाचंद थे । मल्लिनाथ चरित्रभाषा में कवि ने लिखा है। मायाचंद को नंदन जानि, गोत पाटणी सुख की खानि, सेवाराम नाम है सही, भाषा कवि को जानौ इहि । प्रथम वास द्यौसा का जानि, डींग मांहि सुखवास बखानि, महाराज रणजीत प्रचंड, जाटवंश में अति वलवंड । अर्थात् ये पहले घौसा के निवासी थे परंतु बाद में डींग जाकर सुखपूर्वक रहने लगे थे। रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है संवत् अष्टादश शत जानि और पचास अधिक ही मान, भादौ मास प्रथम पक्ष मांहि, पाचै सोमवार के मांहि । तब इह ग्रंथ संपूर्ण कियो, कविजन मनवंछित फल लियो । ४१९ २३५ सेवाराम राजपूत इनकी भी रचना का नाम शांतिनाथ पुराण बताया है किन्तु जैसा पहले कहा जा चुका है यह रचना सेवाराम पाटनी की हैं। इनकी दो अन्य रचनायें उपलब्ध हैं- एकहनुमच्चरित्र छंदोवद्ध सं० १८३१ और भविष्य दत्त चरित्र है। ये तीसरे सेवाराम हैं। ये देवलिया ग्राम जिला प्रतापगढ़ के निवासी थे । ४२० सौजन्यसुंदर आप रतिसुंदर के प्रशिष्य एवं मान्यसुंदर के शिष्य थे। इन्होंने 'द्रौपदी चरित्र' नामक ग्रंथ की रचना ४८ ढालों में की। इसका रचनाकाल १८१८ है अथवा १८८१? यह स्पष्ट नही है। रचनाकाल इन शब्दों में बताया गया है संवत ससि सिद्ध युक्त अठारै, भादव सुकल मजारै जी, अष्टमी दिवस वृहस्पतिवारे, कविता रची सुखकारै जी । इससे यह स्पष्ट है कि रचना भाद्र माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी, वार वृहस्पतिवार को पूर्ण हुई किन्तु संवत् १८८१ निकलता है जबकि जैन गुर्जर कवियों में सं० १८१८ दिया गया था। इसकी प्रारंभिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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