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________________ सुमतिप्रभ सूरि - सुरेन्द्र कीर्ति इसकी प्रारंभिक पंक्तियाँ निम्नवत् है सुपास जिनवर करुं प्रणाम, गुण छत्रीसइ बोलं नाम; मन वच कायाइ करी, आगम वाणी हियइडइ धरी। अंत- आंणी राखई जिनतणी संजम खप्प अपार, कर जोड़ी सही नित्त नमइ, तेउ तरइ भवपार। श्री सुमतिसागर सूरीसर नमु, मानु अरिहंत-आण; अधिकु-ऊछऊ जो हुई, ते जोयो सहु जांण।४१२ सुरेन्द्र कीर्ति दिगंबर संप्रदाय के आंबेरी गच्छ के भट्टारक थे; इन्होंने संस्कृत में ‘समेतगिरि स्तवन' (३३२ श्लोक) की रचना की। मरु गुर्जर भाषा में इनकी कई रचनायें उपलब्ध हैं। इन्होंने अपनी मूल संस्कृत रचना समेतगिरि स्तवन का स्वयं मरु गुर्जर (भाषा) में भाषांतरण किया था। इसका विवरण इस प्रकार है "समेत शिखर जी का स्तोत्र की भाषा (हिन्दी, ३६ कड़ी सं० १८३६ फाल्गुन कृष्ण पंचमी, कासिमबाजार) आदि- प्रथम अजित जिनेश पद चरम पास पदसार, विचले पुत वंदौ सदा, शिषर सम्मेत मझार। अंत भट्टारक अंबेरि कै सुरेन्द्र कीर्ति अभिराम, संस्कृत भाषा दोउनि के, करता है जसधाम। रचनाकाल- अठारह सै छत्तीस मै, फागुण पंचमी नील, भाषा कासमबजार मैं, कीहनी है जु रसील। आपकी दूसरी रचना है 'विषापहार स्तोत्र भाषा' (४२ कड़ी सं० १८३६ माघ कृष्ण चतुर्दशी, कासिमबाजार); रचना का आदि इस प्रकार है श्री जिन ऋषभ मुनीस पद नमि करी सीस नमाय, विषहारी श्रुति को रचूं, भाषा सब हित लाय। रचनाकाल- अठार सै छत्तीस मैं, माघ चतुर्दशी नील; कासमबजार सुथान मैं, भाषा करी रसाल। तीसरी रचना है- सिद्धप्रिय स्तोत्र नवीन भाषा' (२८ कड़ी, सं० १८३६ महा शुक्ल ४, कासिमबाजार। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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