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वीरविजय
२१९ वेद वसु गज चंद्र (१८८४) संवत्सर, चैत्री पूनम दिन ध्यायो रे,
पंडित वीर विजय प्रभु ध्याने, आतम ताप ठरायो रे।
यह रचना विविध पूजा संग्रह पृ० ८४-१०० पर और जैन रत्न संग्रह तथा अन्यत्र भी प्रकाशित है।
बारव्रत की पूजा (सं० १८८६ दीपावली, राजनगर) आदि
सुखकर शंखेश्वर प्रभो, प्रणमी शुभ गुरु पाय,
शासन नायक गायसुं, वर्द्धमान जिनराय। अंत- कष्ट निवारे वंछित सारे, मधुरे कंठ मल्हायों,
राजनगर मां पूजा भणावी, घर-घर उत्सव थायो रे। रचनाकाल- मुनि वसुनाग शशि संवत्सर, दीवाली दिन भायो,
पंडित वीर विजय प्रभु ध्याने, जग जस पडह बजायो रे। यह रचना भी विविध पूजा संग्रह में प्रकाशित है।
भायखला (मुंबापुरीस्थ) ऋषभ चैत्य स्तवन अथवा आदि जिन स्तवन (८१ कड़ी, सं० १८८८ आषाढ़ शुक्ल १५) । आदि- सुखकर साहेब रे पामी, प्रथम राय वनिता नो स्वामी,
कंचन वरणी रे काया, लागी मनमोहन साथे माया।
सेठ अमीचंद साकरचंद के सुपुत्र मोतीचंद के आग्रह पर यह रचना वीर विजय ने की थी। इसमें मूर्ति के पधरावना उत्सव का वर्णन है। इस रचना में विजयसिंह सूरि से शुभविजय तक की वंदना है। यह रचना विजयदेवेन्द्र के सूरि काल में हुई थी। रचनाकाल निम्नलिखित पंक्तियों में दिया गया है
बसु नाग बसु शशि वरसे जी, आसाढ़ी पूनिम दिवसे जी, मे रचीओ ओ गुण दीवोजी, सेठ मोतीशा चिरजीवो जी।
गुण गातां बहु फल पावे जी, शुभवीर वचन रस गावे जी। पार्श्वजिन-पंच कल्याणक (गर्भित अष्ट) पूजा (सं० १८८९, अक्षय तृतीया) आदि- श्री संखेश्वर साहिबो, सुरतरु सम अवदात,
पुरिसादाणी पास जी, षट्दर्शन विख्यात। रचनाकाल- अठार से नेव्यासी अक्षय त्रीज, अक्षय पुण्य उपायो,
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