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________________ २१८ हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गुरु खिमाविजय जस शुभविजय तस मोहना वारु जी, बह्नि रस दंती तिम हिमहंती वत्सर तारु जी मेरु तेरस वासर साधु सुहंकर मोहना वारु जी, गुरुवारे ध्याय में मुनिराया नाम थी तारु जी। यह रचना जिनगुण स्तवनावली सत्यविजय ग्रंथमाला नं० ८ में प्रकाशित है। कोणिकराजा भक्तिगर्भित वीर स्तव अथवा कोणिक- सामैयुं (११ ढाल, २१२ कड़ी, सं० १८३४ देव दिवाली, कार्तिक शुक्ल ११-१५ लीबंडी) कोणिक विंबसार अथवा श्रेणिक का पुत्र था। इसमें कोणिक का इतिहास नाम मात्र को भी नही है; केवल महावीर स्तवन है। त्रिक चतुर्मास देववंदन विधि अथवा चौमासी देववंदन विधि सहित (सं० १८६५? (६२), आषाढ़ शुक्ल प्रतिपद। यह देववंदन माला और जिनेन्द्र भक्ति प्रकाश में प्रकाशित है। अक्षय निधि तप स्तवन (५ ढाल सं० १८७१ श्रावण कृष्ण ५ सूरत चौमासा) यह रचना भी जिनेन्द्र भक्ति प्रकाश, जैन प्राचीन स्तवन संग्रह तथा अन्यत्र से प्रकाशित है। आठ कर्म की चौसठ प्रकारी पूजा (सं० १८७४ अक्षय तृतीया राजनगर) आदि- श्री शंखेश्वर साहिबो समरी, समरी सरसति माय, श्री शुभविजय सुगुर नमी, कहूं तपफल सुखदाय। रचनाकाल- हम राजते जग गाजते, दिन अखय तृतीया आज थै, शुभवीर विक्रम वेद मुनि वसु चंद्र वर्ष विराजते। यह रचना विविध पूजा संग्रह, विधि विधानसाथे स्नात्रादि विविध पूजा आदि संग्रहो में प्रकाशित है। 'पिस्तालीस आगम गर्भित अष्ट प्रकारी पजा अथवा ४५ आगम नी पूजा' (सं० १८८१ मागसर शुक्ल ११ मौन एकादशी, राजनगर) (शत्रुजंय महिमा गर्भित) नवाणुं प्रकारी पूजा (सं० १८८४ चैत्र शुक्ल १५, पालीताणा) प्रारंभ- श्री संखेश्वर दास जी प्रणमी शुभ गुरु पाय, विमलाचल गुण गायसुं समरी सारद माय। रचनाकाल- विजयदेवेन्द्र सूरीश्वर राज्ये, पूजा अधिकार रचायो रे, पूजा नवाणी प्रकारी रचायो, गायो में गिरिरायो रे। विधि योगे तप पूरण प्रगटे तब हठवाद हठावो रे, For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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