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इसे कवि ने सं० १८९८ में १५ दिन में लिखा था, इससे कवि का छंद शास्त्र के साथ काव्य रचना में प्रवीण होना प्रमाणित होता है। यह रचना 'वृंदावन विलास' नामक संग्रह में संकलित है। यह कवि की कई स्फुट रचनाओं का संग्रह है। 'अर्हन्त पाशा केवली' भी संकलित रचनाओं में है । वृंदावन विलास से कवि की रचना का नमूना देखें
वीर
जो अपनो हित चाहत है जिय तौ यह सीख हिये अवधारो; कर्मज भाव तजो सबही निज, आतम को अनुभव रस गारों। श्री जिनचंद सो नेह करो नित, आनंद कंद दशा विस्तारो, मूढ़ लखै हि गूढ़ कथा यह गोकुल गाँव को पैड़ो ही न्यारो । इन्होंने बड़े भावपूर्ण पदों की रचना की है, एक पद का नमूना
मेरी विथा विलोकि रमापति, काहे सुधि विसराई जी ।” इत्यादि । उल्लेखनीय है कि आप जिनचंद के साथ रमापति, गोकुल आदि को भी सादर स्मरण करते हैं और किसी प्रकार की साम्प्रदायिक कट्टरता में विश्वास नहीं करते । ३८१
चौबीस तीर्थंकर पूजा १८४७ की प्रति का विवरण कासलीवाल ने दिया है । ३८२ धर्मबुद्धि मंत्री कथा का रचनाकाल सं० १८०७ भी इन्होंने दिया है।
हमारी बेरियों काहे करत अबार जी
इह दरबार दीन पर करुना, होत सदा चलि आई जी,
वृंदावन के व्यक्तित्व कृतित्व का उल्लेख न तो नाहटा ने और न देसाई ने किया है। यह उपेक्षा दिगंबर होने के नाते तो नहीं है ?
वीर
इन्होंने 'राजिमति नेमिनाथ वारमास' अथवा 'नेमिश्वर ना बारमास' (३७ कड़ी) की रचना सं० १८१२ वैशाख शुक्ल, गुरुवार को पूर्ण की।
आदि
रचनाकाल
अंत
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आदेसर आदे करीने प्रणमुं जिनवर पायां जी,
सरस्वती ने चरणों नमी वली, गिरुआ गणपतिराया, अंतरजामी जी। कार्तिक मासे कमलाकामी, पामी परमाणंद जी,
सज्जनी रजनी आज नी रुडी निरखे नयणानंद जी ।
संवत अठार बार ज वर्षे वैशाख सुदि गुरुवारो जी, वीर मुनि नी विनति प्रभु, भवसागर पार उतारो जी |
नेम राजुल नार ना ने गाया बारेमास जी,
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