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________________ राजकरण - राजशील (पाठक) १८३ वारी जाऊं पूज महारी वीनति सुणजो अधिको चाव, सुगुरु म्हारा हो; म्हां दिसथ करज्यों मया, धरो पद्म सकोमल पांव । राजकरण ने स्वयं भी उनको पधारने की विनती की है, यथा दिलभर दर्शन देखने, सफल करे संसार, राजकरण नित राज रे, पांय लागै हर्ष अपार । इस भास में दो गहूलियाँ हैं। प्रथम गहूली में पधारने की विनती विज्ञप्ति का विवरण है और दूसरी गहूली में उनके माता-पिता आदि का वर्णन है । इसी भास के साथ जिन 'सौभाग्यसूरिभास' भी छपा है । इन दोनों रचनाओं का घनिष्ठ संबंध है। जिनहर्षसूरि के स्वर्गवासोपरांत उनके पद के लिए विवाद हुआ। जिनसौभाग्य दीक्षित जिनहर्ष के शिष्य थे और महेन्द्र किसी अन्य यती के शिष्य थे पर जिनहर्ष ने महेन्द्र को अपने पास रखकर विद्याभ्यास कराया था। दोनों में से जिनहर्ष का पट्टधर कौन हो? इस विवाद का निर्णय करने के लिए चिट्ठी डाली गई। जब जिन सौभाग्य गच्छ के मुख्य यतियों को बुलाने बीकानेर चले गये तो इधर कुछ यतियो और श्रावकों ने मिलकर महेन्द्र को पट्टधर घोषित कर दिया। जब जिन सौभाग्य वापस लौटे तो यह समाचार पाकर वापस बीकानेर लौट गये। बीकानेर के श्रावकों-यतियों और राजा रत्नसिंह ने जिनसौभाग्य को पट्टधर घोषित कर दिया। इस ऐतिहासिक विवाद की सूचना इस भास से मिलती है। इस भास से पता चलता है कि जिन सौभाग्य कोठारी कर्मचन्द की पत्नी करण देवी की कुक्षि से उत्पन्न हुए थे, और रत्नसिंह आदि के प्रयत्न से सं० १८९२ मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी गुरुवार को गादी पर आसीन हुए थे। खजान्ची लालचंद ने पट्टोत्सव बड़ी धूमधाम से किया था। भास का प्रारंभ इस प्रकार है करणा दे कूंखे ऊपना, सदगुरु जी पिता करमचंद विख्यात हो, गच्छनायक सौभाग्य सूरि हो सदगुरु जी । अंत में पाट पर विराजने की तिथि दी गई है, यथा संवत अठार बाणवे सद्गुरु जी सुद सातम गुरुवार हो, मिगसर पाठ विराजिया सद्गुरु जी, खूब थया गहगाट हो । २३२२ इसके कुछ ही पश्चात् उनके किसी प्रिय शिष्य ने या संभवतः राजकरण ने ही यह भास भी लिखा होगा | राजशील (पाठक) - आप की गद्य रचना 'सिंदुर प्रकर भाषा बाला० सं० १८३८ से कुछ पूर्व For Private & Personal Use Only Jain Education International ܕ www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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