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________________ १७८ हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रत्नचंद || - आप आचार्य मनोहरदास की परंपरा में थे। आपका जन्म चौ० गंगाराम की पत्नी श्रीमती सरुपा देवी की कुक्षि से सं० १८५० भाद्र कृष्ण चतुर्दशी को वातीजा (जयपुर) नामक गाँव में हुआ था। सं० १८६२ में मात्र १२ वर्ष की अवस्था में ये मुनि हरजीमल से दीक्षित हुए और सं० १९२१ में इनका आगरा में स्वर्गवास हुआ था। ये बड़े कुशल तार्किक, शास्त्र विद्वान् और अच्छे कवि थे। इन्होंने गद्य और पद्य दोनों साहित्यिक विधाओं में पर्याप्त साहित्य की रचना की। पद्य वद्ध रचनाओं में जिन स्तुति, सती स्तवन, संसार वैराग्य, बारह भावना, बारह मासा के अलावा कई भावपूर्ण आध्यात्मिक पद प्राप्त हैं। इनका प्रकाशन रत्नज्योति, नाम से दो खण्डों में संपादित करके श्रीचन्द ने श्री रत्नमुनि जैन कालेज, लोहामंडी, आगरा से किया है। चरित्र काव्यों में सुखानंद मनोरमा चरित्र विस्तृत रचना है। कई चरित्र काव्य जैसे समर चरित और इलायची चरित आदि प्रकाशित है।३१२ रत्नधीर खरतरगच्छीय साधु हर्षविशाल > ज्ञानसमुद्र > ज्ञानराज > लब्धोदय, ज्ञानसागर के शिष्य थे। आपकी एक गद्य रचना का उल्लेख मिला है जिसका नाम है 'भुवन दीपक बालावबोध'। यह रचना सं० १८०६ की है। इसका रचनाकाल 'रसा श्रवस्विन्दुमिते' का असंदिग्ध अर्थ नहीं बैठता। इसलिए देसाई जी ने सं० १८०६,३१३ १८५६ आदि कई अर्थ ढूढ़े है परन्तु वे समाधान कारक नही है। रत्नविजय | तपागच्छीय परम प्रसिद्ध आचार्य हीरविजय की परंपरा में कल्याणविजय > धनविजय पाठक > कुँवरविजय उपाध्याय > गुणविजय गणि> धीरविजय > पुण्यविजय के शिष्य थे। आपकी प्रसिद्ध रचना 'शुकराज चौ०' (६५ ढाल सं० १८०८ आसो सुदी १०, गुरुवार, नेयड) का प्रारंभ इस प्रकार हुआ है वंछित पूरण कै सदा, श्री रिसहेसर देव, चित चोपे करीने सदा, हूं प्रणमूं नितमेव। इसमें शुकराज का उदार चरित्र वर्णित है। कवि प्रारंभ के पश्चात् कहता है कि कथा कोई हो वक्ता से अधिक विचक्षण श्रोता को होना चाहिए, तभी तात्पर्य ग्रहण संभव होता है, यथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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