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________________ रघुपति - रत्नचंद | १७७ है। । प्रथम रचना 'जैनसार बावनी' मातृकाक्षरा पद्धति पर रचित हैं; इसमें कुल ५८ पद्य है। यह रचना सं० १८०२ में नापासर में रची गई। इसका प्रारंभिक पद्य इस प्रकार है ॐकार बड़ी सब अक्षर में, इण अक्षर ओपम और नहीं। कारन के गुण आदरि कै, दिल उज्वल राखत जांण वही । ऊँकार उचार बड़े-बड़े पंडित, होत हैं मानित लोक यही । ॐकार सदा जो ध्यावत है, सुख पावत हैं रुधनाथ सही । ३०९ इनकी अन्य उपलब्ध रचनाओं जैसे नंदिषेण चौ०, श्रीपाल चौ० और सुभद्रा चौ० आदि का विवरण तथा उद्धरण हिन्दी जैन साहित्य का वृहद् इतिहास खण्ड - ३ पर पृ० ३८८ से ३९३ पर दिया जा चुका है। यहाँ केवल १९वीं शती में रचित उक्त दो रचनाओं का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। रत्नचंद | इन्हें नागौर निवासी गंगाराम सरावगी ने कुढ़गाँव के किसी व्यक्ति के यहाँ से गोद लिया था। पूज्य गुमानचंद जी के उपदेश से इन्हें वैराग्य हुआ और सं० १८४८ में मंडोर में दीक्षित हुए। आपका जन्म सं० १८३४ में हुआ था अर्थात् १४ वर्ष की वय में साधु हो गये। इन्हें १८८२ में आचार्य पद प्राप्त हुआ। आपका स्वर्गवास सं० १९०२ ज्येष्ठ शुक्ल १४ को जोधपुर में हुआ। आप संयमी साधु, श्रेष्ठ विद्वान और अच्छे रचनाकार थे। सं० १८५२ से १८९१ तक आप रचनाशील रहे। इस अवधि में आप ने निम्न रचनायें का V चंदनबाला चरित्र (ढाल १४ सं० १८५२, पाली); चंदन मलयागिरि चरित्र (ढाल १६, सं० १८५४, पाली); निर्मोही (ढाल ५ सं० १८७४, पाली); गज सुकुमाल चरित्र (ढाल ७, सं० १८७५, नागौर); आषाढ़ भूति (ढाल ९, सं० १८८३, फलौदी); दामनख (ढाल ८, सं० १८९१, रणसी गाँव); देवदत्ता (ढाल ८ सं० १८९१, रणसी गाँव), बंकचूल (ढाल ६ सं० १८९१ रणसी गॉव ), श्री मती चौ० (ढाल ६) और १० स्वजन उपदेशी (छोटी व बड़ी स्फुट रचनायें ) । ३१० इस प्रकार इनका रचना संसार विस्तृत है और प्राय: जैन साहित्य के सभी प्रमुख चरित्रों पर इन्होंने रचनायें की है। श्री मो० द० देसाई ने इन्हें गुमानचंद का प्रशिष्य और दुर्गादास का शिष्य बताया है। उन्होंने इनकी केवल दो कृतियों चंदन बाला और निर्मोही का नामोल्लेख मात्र किया है । ३११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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