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माखन कवि - माणक
माखन कवि
आपने 'पिगंल छंद शास्त्र' की रचना सं० १८६३ में की। यह छंद शास्त्र पर रचित उत्तम कृति है । इसका अपर नाम 'माखन छंद विलास' भी है। इनके पिता गोपाल भी अच्छे कवि थे। इसमें अनेक दुर्लभ छंदों यथा संखधारी, डिल्ल, करहंया समानिका सारंगिका, तरंगिका, भ्रमरावलि आदि का सुष्ठु परिचय दिया गया है। सर्व प्रचलित मात्रिक छंद जैसे दोहा, चौबोला, छप्पय, सोरठा आदि के अलावा संस्कृत के प्रसिद्ध छंदों भुजंग प्रयात, हरिमालिका और मालिनी आदि का सुबोध परिचय प्रस्तुत किया गया है। यह रचना कवि ने अपने पिता के आदेश पर की थी । रचनाकाल इस प्रकार दिया है
संवत वसु रस लोक पर नखतइ सा तिथि मास, सित वाणा श्रुति दिन रच्यौ माखन छंद विलास । पिंगल सागर छंदमणि वरण वरण वहुरंग, रस उपमा उपमेय तें सुंदर अरथ तरं । ताते रच्यौ विचारि कै नर वानी नरहेत, उदाहरण बहु रसन कै वरण सुमति समेत । विमल चरण भूषित कलित, बानी ललित रसाल, सदा सुकवि गोपाल कौ, श्री गोपाल कृपाल । तिन सुत माखन नाम है उक्ति युक्ति त हीन, एक समय गोपाल कवि सासन हरि यह दीन । पिंगल नाग विचारि मन नारी बानीहि प्रकास, यथा सुमति सौं कीजिए, माखन छंद विलास।२९२
माणक
(मुनि) आपने खरतरगच्छीय आचार्य जिनलाभ सूरि की स्तुति में दो गहूलियाँ लिखी है। इनके अतिरिक्त आपने चौबीसी और कई स्तवन आदि भी लिखे है। प्रथम गहूली का प्रारंभ इस प्रकार हुआ है
आज सुहानो जी दीह, हाज ने बधावो जी अम्ह घर आंगनै जी । अंग उमाहो जी आज, सद्गुरु हे आया आणंद अति धणै जी ।
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इस गहूली से ज्ञात होता है कि जिनलाभ सूरि विक्रमपुर निवासी पंचानन की पत्नी पद्मा दे की कुक्षि से उत्पन्न हुए थे। अल्प वय में ही जिनभक्त सूरि से दीक्षा ली और १८०४ में उनके पट्टधर प्रतिष्ठित हुए। आपने १८ वर्षों तक विभिन्न प्रदेशों में
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