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________________ महानंद रचनाकाल शियल संञ्झाय (सं० १८४३ चौमास, भावनगर) का आदिश्री गुरु चरण नमी करि, गांसू सीयल सुव्रत हो मीत, रचनाकाल- अठारे तेतालीस मेंभावनागर चोमास हो मीत, महानंद मुनिवर रंग थी, विधि शीयल संञ्झाय हो मी | राजुल बारमास (८० कड़ी सं० १८४५ माह शुक्ल ८) रचनाकाल— वेद पंडव ने मन आणो, नेमचंद संवत ओह बखाणो, उद्योत अष्टमी माह मास, मार्त्तड पूरांण उमाह । नंद त्रय वसु चंद संवत शुभ जाणीये; दीव वंदर नो संघ बड़ो वखाणी ये। सनत्कुमार रास और इस स्तवन में आचार्य सोमचंद सूरि की वंदना की गई आदि यह रचना आत्मानन्द शताब्दी स्मारक ग्रंथ पृ० १७६ १८३ पर प्रकाशित है। ज्ञानपंचमी स्वाध्याय (४ ढाल, सं० १८४९, सुरत) का आदि श्री नेमीश्वर जिन नमूं, ब्रह्मचारि भगवान; उज्वल पंचमी अवतर्या, श्रावण सुद नी स्वाति । रचनाकाल अष्टादश शत ऊपरे, वर्ष उगण पंचास, श्री पूज्य की सोमचंद जी, सूरति नयर चोमास । कल्याणक चौबीसी (सं० १८४९ आसो सुद १५, रविवार सुख ) शासनपति चौबीस ना प्रेमे प्रणमी पांय; शासन देवी सानिधि, गांवु श्री जिनराय । १६५ रचनाकाल — अष्टादश इगुण पंचासवरसे, आश्विन मास अति भलो; पूनम तिथि ने वार दिनकर, स्तव्यो में त्रिभुवन तिलो । 'चौबीसी' (रचना स्थान दीव वंदर) रचनाकाल नहीं मिला, नमूने के लिए दो पंक्तियाँ आदेशर अवधारिये रे प्रभु विनतडी अतिसार, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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