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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास वैशाख शुक्ल सप्तमी बुधवार) की रचना की। इसकी प्रारंभिक पंक्तियाँ निम्नांकित हैं
श्री रिषभादिक नित्य नमू, चोविसे जिनराज,
सेव्यां सीव संपति मिलै, सीझे सधला काज। गुरु परंपरा- मम गुरु मोटा ऋषि तणा, पद प्रणमुं हितवंत;
गुरुपद सेव्या संपजे, मंदमती मतीवंत। रचनाकाल इन अंतिम पंक्तियों में दिया गया हैसंवत् निधि नभ वसु शशि, वैसाख मास वखाण्यो री। शुक्ल पक्षे चंद्र ज वारे, सप्तमी दिवस सुजाणो री।
जैसा महानंद नाम हैं तथैव आप महाकवि भी थे और आपने बड़ी छोटी बीसो रचनायें की है जिनमें से कुछ अत्यन्त सरस हैं। उनकी कुछ विशेष रचनाओं का संक्षिप्त परिचय आगे प्रस्तुत किया जा रहा हैं
दशार्णभद्र संञ्झाय ढालवंध (सं० १८३२, चौमासा, सूरत) रचनाकाल- अष्टादश वत्रीस वरसे, सुरत नगर चौमास ओ;
तस्यानुग्रह पामी प्रेमे, भली भणी ओ भास ओ। मोटा ऋषि मुनि चरण सेवक, मुनि महानंद कहे मुदा; रीधि सीधि अणंद आयो, संघ ने दिन-दिन सदा।"
सनत्कुमार रास (१८३९ वैशाख शुक्ल तृतीया, दीव) आदि- श्री श्रुतदेवी सारदा, प्रणमी श्री गरुपाय,
चक्री सनत्कुमार नो, स्तवसुं गुण राजाय। रचनाकाल और स्थान के लिए निम्न पंक्तियाँ देखेंश्री गुण सूरि सोहे सोमचंद जी सुखकार रही दीव चौमासं, संवत शत अठार। उगणचालीस वरसे, वैशाख मास बखाण; ऊजल पखवाड़े आखात्रीज तिथि जांण। कलश में भी रचनाकाल दिया है, यथा-- अठार सै सत इगुण चालीसे सम्यक रची संज्झाय जी।" २४ जिनदेह वरण स्त० (४ ढाल सं० १८३९ दीव)
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